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ने आचार्य श्री को रत्नत्रय से विभूषित बताकर मुनियों में श्रेष्ठमुनि माना है । दुःख प्रकट करते हुए कवि ने लिखा है
हा
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यातो,
सूरिवर्य शिवसागर कुत्र भक्तान् विहाय जनवृन्दगणान् रत्नत्रयेण निखिलेन आसीत्त्वमेव मुनिराज गणे प्रमुख्यः ॥
सुभव्यान् । विभूषिताङ्क
इस रचना में उपमाओं के प्रयोग और कवि की कल्पनाएँ भी द्रष्टव्य है । उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत है एक पद्य । इसमें कवि ने आचार्य शिवसागर जी के ज्ञान-ध्यान में मग्न, गुणों की निधि, दिव्य तेजवाला, मुनीन्द्र बताकर जैन रूपी आकाश का सूर्य निरूपित किया है । ज्ञान का सागर बताया है । कवि को नहीं किसी को भी यह बोध नहीं था कि महाराज श्री इतने शीघ्र समाधिस्थ हो जावेंगे । कवि के इन भावों की अभिव्यक्ति इस प्रकार हुई है। ज्ञानेध्याने निमग्नः सकलगुणनिधिर्दिव्यतेजो मुनीन्द्रो, जैनाकाशक भानुर्निखिल नरनुतो ज्ञानसिन्धुः पवित्रः । रे रे ज्ञानं न पूर्व न विदितमेतत् क्वापि केनापि लोके, सर्वान् भक्तान् विहाय त्वमिह लघुतरं यास्यसि स्वर्गलोकम् ॥
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श्री पञ्चराम जैन "
श्री पञ्चराम जी की एक स्फुट रचना "गुरोश्चरणयोः श्रद्धाञ्जलि " शीर्षक से प्रकाशित हुई है ।132 इसमें केवल तीन पद्य हैं । प्रथम पद्य में कवि ने उसके दिवंगत होने पर दुः ख प्रकट किया है तथा आचार्य श्री के गुणस्मरण को संसारी जीवों को पवित्र करने वाला बताया है । पद्य है
गुरो ! त्वमस्मान् परतो विहाय, दिवङ्गतः स्यामहमत्तदुःखी । तथापि युष्माद् गुणरत्नराशिः, पुनातु नित्यं भववर्तिजीवान् ॥
दूसरे पद्य में आचार्य श्री को धर्मोपदेश रूपी धर्म वर्षा करके जीवों को सम्बोधित करने वाला तथा विविध गुणों से उज्ज्वल जीवन वाला बताकर उनके स्वर्गवास को देवों को सम्बोधित करने वाला निरूपित किया है । कवि की कल्पनाओं का प्रस्तुत पद्य सुन्दर उदाहरण है
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आचार्य वर्य शिवसागरमत्र वन्दे, गुण्यैः गुणैरतिसमुज्ज्वल जीववन्तम् । धर्मोपदेशवृषवृष्टि वशात् प्रबोध्य, स्वर्गङ्गागतेऽमरततिं सहसात प्रबोद्धुम् ॥ आचार्य श्री के समस्त गुणों का उल्लेख करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कवि भक्ति पूर्वक गुरु के चरणारविन्दों में श्रद्धाञ्जलि समर्पित की है । अपनी विनय प्रकट करते हुए कवि ने लिखा है -
गुणानगण्यान् धर्मर्षिणस्ते, वक्तुं समस्तानहम-प्यशक्तः । तथापि भक्त्या तव पादपद्मे, श्रद्धाञ्जलिं देव समर्पयामि ॥
इन पद्यों में कवि के संस्कृत ज्ञान का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वर्णन कल्पनाओं की पुट हैं । भाषा में प्रवाह और पदों में लालित्य है ।