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पिता थे । वे पड़वार छोड़कर सागर में रहने लगे थे । आपरके छोटे भाई प्रकाशचन्द्र जी हैं । आपने जैनदर्शनाचार्य, धर्मशास्त्री, साहित्यशास्त्री, काव्यतीर्थ, साहित्यरत्न आदि शैक्षणिक उपाधियाँ प्राप्त की हैं । प्राचीन भारतीय इतिहास विषय में एम.ए. करने के पश्चात् आप पुरातत्त्व की शोध-खोज में संलग्न हैं । भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली में शोध अधिकारी हैं । आपली संपूर्ण शिक्षा श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय, सागर में हुई । आपकी दो रचनाएं प्रमेयरत्नमाला और प्रमेयरत्नालंकार प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं ।
आपका हिन्दी, अङ्ग्रेजी और संस्कृत पर समान अधिकार है । पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी जी के प्रति रची गयी 'गणेशाष्टक' रचना आपकी प्रसिद्ध है । इस रचना में शिखरिणी छन्द में आठ श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक की चतर्थ पङक्ति समान हैं । पज्य वर्णी जी का जीवन चरित इस रचना का विषय है । वर्णी जी की वाणी मनुष्यों के मन को शक्ति प्रदायनी
थी, अहितकर और हितकर दोनों में वर्णी जी के समान भाव थे । स्वर्ण, काँच, मिट्टी | भवन सभी उन्हें समान थे । इस स्थित का कवि ने इस प्रकार उल्लेख किया है
यदीया वाग्धारा सुमनुजमनः शीतलकरा, सभा भाव यस्याप्रहिक रजने वा हितकरे । सुवर्णे काचे वा मूतजन छटे वा सुभवने,
गणेशो वर्णी मे शत शत गणेशो विजयताम् ।। यह श्लोक उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया गया है । सम्पूर्ण रचना इसी प्रकार सरल पदावली से युक्त हैं।
पं. नेमिचन्द्र जैन श्री पार्श्वनाथ जैन गुरुकुल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, खुरई के प्राचार्य डा. नेमिचन्द्र जैन का जन्म सागर जिले के बलेह ग्राम में हुआ । आपकी शिक्षा श्री गणेश जैन विद्यालय, सागर और स्नातकोत्तर शिक्षा आरा (बिहार) में हुई । आरा के देव कुमार शोध संस्थान में कार्य करने के उपरान्त वे विगत अनेक वर्षों से खुरई में प्राचार्य हैं । संस्कृत और हिन्दी | भाषा में उनकी समान गति है । संस्कृत में आपकी अनेक स्फुट रचनाएं उपलब्ध हैं । किन्तु इस प्रबन्ध में कन्नड़ भाषा से संस्कृत में अनूदित 'कषाय जय भावना' रचना को विश्लेषण के लिये स्वीकार किया है । श्री 108 मुनि कनक कीर्ति जी द्वारा रचित कन्नड़ भाषा की रचना
'कषाय जय भावना' 'कषाय जय भावना'
आकार - 'कषाय जय भावना' संस्कृत के इकतालीस श्लोंकों में से निबद्ध अनूदित रचना है । मूल रचना कन्नड़ भाषा है ।
नामकरण - कषायों को त्यागने की प्रेरणा के कारण प्रस्तुत कृति का नाम 'कषाय जय भावना' है।
रचनाकार का उद्देश्य - प्रस्तुत रचना के अन्तिम पद्य के अनुसार 'भव्य जीवों के | चित्त की शुद्धि के लिए 'कषाय जय भावना' प्रणयन किया गया है ।