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________________ 169 स्व. पं. खूबचन्द्र शास्त्री द्वारा रचित संस्कृत रचना का अनुशीलन 'अपरिग्रह के अवतार- श्री आचार्य शांतिसागर जी महाराज'115 आकार - 'अपरिग्रह के अवतार - श्री आचार्य शान्तिसागर जी महाराज' रचना संस्कृत के आठ श्लोकों में निबद्ध स्फुट काव्य है । नामकरण - प्रस्तुत कृति में मुनिवर शान्तिसागर जी महाराज को अपरि-ग्रही अवतार निरूपित किये जाने के कारण ही 'अपरिग्रह के अवतार-श्री आचार्य शान्तिसागर जी महाराज' शीर्षक प्रयुक्त है। रचनाकार का उद्देशय - आचार्य श्री के चरणों में श्रद्धाञ्जलि स्वरूप अर्पित करने | के उद्देश्य से प्रेरित होकर इस कृति का प्रणयन किया है । अनुशीलन - (आचार्य श्री) गणों के अधिपति तपस्वी, शान्ताकृति, संयमी, मङ्गलमूर्ति, महनीय गुणों के धारण करने वाले, आदर्शों के अनुयायी आप मेरे प्रणाम एवं श्रद्धासुमनों को सहर्ष स्वीकार कीजिए। इस प्रकार विशेषण युक्त विविध विनयवचनों द्वारा भावाञ्जलि अर्पित की गई है। .. श्री सिद्धेश्वर वाजपेयी शासकीय विद्यालय सिरोंज के अवकाश प्राप्त संस्कृत अध्यापक श्री वाजपेयी जी प्रस्तुत स्फुट रचना ब्र. पं. सरदार मल्ल अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित हुई हैं ।16 प्रस्तुत रचना में मात्र तीन ही श्लोक हैं । किन्तु उपमाओं के प्रयोगों से, यमक युक्त भाषा के व्यवहार से ये श्लोक महत्त्वपूर्ण हैं । रचनाकार ने सच्चिदानन्द शब्द यमक अलंकार में प्रयोग करते हुए ब्र. पं. सच्चिदानन्द को निजात्मा के आनन्द में आनन्दित बताकर शिव पथ का पथिक, आगम ज्ञाता और ब्रह्म ज्ञान में उन्हें महर्षि की उपमा दी है - जयतु सच्चिदानन्द सच्चिदानन्द मूर्तिः , शिवपथ -पथिकानां भ्रान्तिनाशो समर्थः । शिक्षा दीक्षा गुरुः क्षुल्लकः श्रीगणेशः । आगमात्मामनिष्णातः ब्रह्मज्ञाने महर्षिः ॥1॥ स्वामी जी गुणों की खान, मङ्गलों के मङ्गल, अध्यात्मवेत्ता, श्रीमन्त, दानी, त्यागी, वैरागी और त्रस्त तथा दुखियों को ऋद्धि-सिद्धि देने वाले थे । कवि ने इन गुणों का समावेश अपनी रचना में इस प्रकार किया है - अध्यात्मवेत्ता भव्य सन्दोह बन्धुः, अनुपम गुण-आकर मङ्गलं मङ्गलानाम् । श्रीमन्तो दानी '. त्याग वैराग्ययुक्तः, दुखित त्रसितजीवः ऋद्धिसिद्धिप्रदायी ॥2॥ पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी के समान स्वामी जी भी वर्णी पद से विभूषित थे, वर्णी सच्चिदानन्द | स्वामी पद विभूषितः, महोजस महाज्ञानी सिद्धेश्वर त्वयंभवः ॥3॥ श्री रामनाथ पाठक 'प्रणयी' ...श्री एच. डी. जैन कालेज, आरा के प्राध्यापक श्री 'प्रणयी' द्वारा प्रणीत दो स्फुट रचनाएं हैं । 'जयतु गुरु गोपालदासः' शीर्षक से प्रकाशितरचना में रचनाकार ने गुरु गोपालदास
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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