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रचनाएँ - श्री मद् वर्णिगणेशाष्टकम् तथा पपौराष्टकम् आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । पं. ठाकुर दास जी की भाषा अलङ्कारों से शृंगारित है । भाषा में प्रवाह है । सरल और सुबोध शब्दों का प्रयोग है । पूज्य वर्णी जी के प्रति रची रचना में उक्त सभी विशेषताएँ द्रष्टव्य है 100 आपने पूज्य वर्णी जी के चिरायु होने की कामना करते हुए श्रीमद् वर्णि गणेशाष्टकम् रचना में इन्होंने पूज्य वर्णी जी के मधुर हितैषी स्वभाव का मूल्याङ्कन करते हुए लिखा है कि स्याद्वाद रूपी अमृत-सागर की वृद्धि के लिये चन्द्रमा स्वरूप, वात्सल्य-भावों के सागर, पुण्यवान् महर्षि, आगम-पान से तृप्त, आत्म-रहस्य के ज्ञाता, उज्ज्वल प्रतिष्ठाधारी निर्मल कीर्तिवाले, आत्मध्यानी श्री गणेश प्रसाद वर्णी चिरकाल तक जीवें। इन भावों की अभिव्यक्ति पण्डित जी की रचना में इस प्रकार हुई है -
स्याद्वादामृत वादिवर्द्धन विधुर्वात्सल्य रत्नाकरः, पुण्यश्लोक-महर्षि-वाङ्मय सुधा-पानेन तृप्तिं गतः । आत्मख्यातिरहस्यवित्सु धवलां प्राप्तः प्रतिष्ठां पराम्
जीयान्निर्मलकीर्तिरात्मनिरतः श्रीमद्गणेशश्चिरम् ॥ वर्णी जी का हृदय आचार्य कुन्द कुन्द की वाणी से सुशोभित था। उनका कण्ठ शमदम रुपी मणियों की माला से विभूषित था । वे तत्त्वज्ञानी थे, महर्षि थे और विज्ञ थे । कवि ने इन भावों को इस प्रकार व्यक्त किया है -
विलसितहृदि सूरिः कुन्दकुन्दोऽपि यस्य, 'अमृतराशि महर्षेस्तत्त्वदर्शी च विज्ञः ।
शम-दम गणिमाला यस्य कण्ठे विभाति,
चिरतरमतिजीयात् श्रीगणेशः स वर्णी ॥ | पपौराष्ट्रक°०९ :
आकार - “पपौराष्टक' रचना आठ श्लोकों में आबद्ध स्फुट काव्य है ।
नामकरण - सिद्ध क्षेत्र पपौरा जी का माहात्म्य आठ श्लोकों में करने के कारण "पपौराष्टक' नाम तर्कसङ्गत है ।
रचनाकार का उद्देश्य - इस कृति के माध्यम से रचनाकार ने विश्वकल्याण और जनहित की भावना को साकान किया है ।
अनुशीलन - मध्यप्रदेश में टीकमगढ़ नगर के पूर्व की ओर 3 कि.मी. दूरी पर अतिशय सिद्ध क्षेत्र पपौरा जी स्थित है । सघन वृक्षों की शीतल छाया, पक्षियों के कलरव, महात्माओं के सान्निध्य एवं सज्जनों की उपस्थिति से यहाँ के वातावरण में शान्ति है। यहाँ पर "सभामण्डप" में मुनियों के प्रवचन होते हैं । जिन्हें सुनकर मानव-मन तृप्ति और शान्ति प्राप्त करता है चार मान स्तम्भ हैं । विद्यालय, उपवन, धर्मशाला, बावड़ी आदि के कारण किसी प्रकार की असुविधा नहीं है । यहाँ मनुष्य प्रवचन श्रवण मनन चिन्तन आत्मालोचन का अवसर पाकर आननदत होते हैं । इस प्रकार सब प्रकार से सुखदायी दिव्य पपौरा जी परम कल्याणकारी अतिशय सिद्धक्षेत्र है।
८. प्रो. राजकुमार साहित्याचार्य ___ परिचय- डॉ. राजकुमार साहित्याचार्य का जन्म 15 अक्टूबर, सन् 1940 को उत्तरप्रेदश | के झांसी जिले के गुंदरापुर ग्राम में हुआ । आपने साहित्याचार्य, न्याय काव्यतीर्थ और एम.ए.