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की उपाधियाँ प्राप्त की । प्रारम्भ में आपने पपौरा ( टीकमगढ़) के वीर जैन विद्यालय और | उसके उपरान्त दिगम्बर जैन कालेज, बड़ौत में अध्यापन कार्य किया । वे आगरा कालेज में भी संस्कृत विभागाध्यक्ष के पद को अलंकृत करते हुए सेवा निवृत्त हुए । उन्होंने मदन पराजय, प्रशमरति प्रकरण बृहत्त् कथाकोश तथा जसहरचरिउ आदि ग्रन्थों का विद्वत्तापूर्ण सम्पादन किया । वे भारतीय ज्ञानपीठ काशी में भी संपादन कार्य में निरत रहे, उन्होंने साहित्य और भाषा शास्त्रं पर प्रकाम पाण्डित्य प्राप्त किया है । उनकी संस्कृत रचनाओं में भाव सौम्यता, अर्थ-गौरव और प्रसादगुण पढ़े- पढ़े निदर्शित है । यहाँ उनका एक पद्य " श्रीबन्ध" के रूप में प्रस्तुत
वस्तुतः " श्रीबन्ध" चित्र नामक शब्दालंकार का एक अंश है । आचार्य मम्मट ने इस प्रकार के बन्धों को चित्रालङ्कार के भीतर स्थान दिया है। उन्होंने लिखा है
तच्चित्रं यत्र वर्णानां खङ्गाद्याकृति हेतुता । 102
वस्तुत: विविध प्रकार के चित्रबन्ध क्लिष्ट काव्य की श्रेणी में आते हैं । किन्तु इस प्रकार का लेखन रचयिता के गंभीर अध्ययन और समुन्नत पाण्डित्य को व्यक्त करते हैं। डॉ. राजकुमार, सिद्धान्त शास्त्री, साहित्याचार्य द्वारा रचित संस्कृत रचना का अनुशीलन
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वर्णिवाणी १०३ : ( श्रीबन्ध : )
आकार – “ वर्णिवाणी" रचना संस्कृत के एक श्लोकीय " श्रीबन्ध में आबद्ध" स्फुट काव्य है ।
नामकरण प्रस्तुत श्लोक में (वर्णिवाणी) की सराहना करने के कारण इस रचना का नाम “वर्णिवाणी" किया गया है । जो उपयुक्त ही है ।
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रचनाकार का उद्देश्य - वर्णी जी की वाणी की प्रशस्ति का यशोगान ही प्रस्तुत कृति के सृजन का आधार है ।
अनुशीलन - जो वाणी अपनी तेजस्विता से चन्द्रमा के सौन्दर्य लक्ष्मी की कान्ति तथा जनमन की प्रसन्नता में श्री वृद्धि करती है, वह भावपूर्ण, रससिक्त, गुणयुक्त वर्णिवाणी" अमरत्व से ओत-प्रोत है ।
डॉ. भागचन्द्रजी जैन भागेन्दु "
परिचय
जबलपुर जिले के “रीठी" नगर में जन्मे डॉ. भागचन्द्र जी " भागेन्दु " जैन समाज के उन मनीषियों में से हैं, जिन्होंने अपने जीवन को सेवामय बना रखा है। प्राचीन वाङ्मय, भाषा शास्त्र, जैन दर्शन- संस्कृति और कला के क्षेत्र में उनकी विशिष्ट सेवाएँ हैं। डॉ. भागेन्दु जी का अध्ययन सागर (म.प्र.) के श्री गणेश जैन महाविद्यालय तथा सागर विश्वविद्यालय में हुआ ।
जैन - विद्याओं पर अनुसंधान निर्देशन हेतु विख्यात डॉ. भागेन्दु जी सम्प्रति सागर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दमोह के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हैं । आपके निर्देशन में पाँच शोधार्थियों को जैन विषयों पर पी. एच. डी. उपाधि प्राप्त
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