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________________ 146 कवि को - राजस्थान सरकार ने उनकी संस्कृत साहित्यसेवा के लिए और श्रीमहावीर जी तीर्थ क्षेत्र कमेटी ने उनके "वचनदूतम्" संस्कृत काव्य के लिए महावीर पुरस्कार को सम्मानित किया गया था । कवि ने अपने इन सम्मानों का उल्लेख प्रस्तुत रचना के अंत में " हेतु प्रदर्शनम् " शीर्षक के अन्तर्गत दो श्लोकों में किया है क्षेत्राधिकारिभिर्मान्यैरध्यक्षादि राज्याधिकारिभिस्चापि यथाकालं समाहूय सत्कृतोऽहं पुरस्कृतः । सत्यं - पुण्यादृते जीवैः सौभाग्यं नैव लभ्यते7 ॥4॥ महोदयैः । राज्यपालैर्महाजनैः ॥3॥ 'अभिनव स्तोत्र" अभिनव स्तोत्र में पं. मूलचन्द्र जी का नाम सङ्कलन - कर्त्ता के रूप में प्रकाशित हुआ है । किन्तु यथार्थता इससे भिन्न है । वे सङ्कलनकर्त्ता नहीं रचनाकार थे । स्तोत्रों के अन्त में इस तथ्य का उल्लेख द्रष्टव्य है "" - - एकीभावस्तोत्रादन्त्य पादान् मुदा समादाय । श्रीनेमेः स्तुतिरेषा रचिता "मूलेन्दुना" भक्त्या ॥ राजीमत्या हार्द संकल्प्येयं च समस्यापूर्तिः ॥ मालथोनाख्या ग्रामे जन्माप्तेन मया रचिता ॥ पृ.201 तेनैवेयं रचिता विषापहारान्त्यपाद संयुक्ता । "मूलेन्दुना " च रुचिरा संस्तुतिः पुराणपुरुषस्य ॥ पृ.37।। कल्याण मन्दिर स्तोत्र के अन्तिम श्लोक में तथा भक्तामर स्तोत्र के साठवें श्लोक में भी उनके द्वारा उन स्तोत्रों की रचना किये जाने के उल्लेख प्राप्त हैं । इन श्लोकों के पश्चात् श्री शास्त्री जी द्वारा हिन्दी भाषा में अनुदित ग्रन्थों का नामोल्लेख भी किया गया है । अष्ट सहस्री, आप्तमीमांसा और युक्त्यनुशासन के हिन्दी अनुवाद का द्योतक श्लोक निम्न प्रकार है - अष्टसहस्त्रीभावं अपरं युक्त्यनुशासनमनूदितं येनादायैवाप्तमीमांसा । भाषया हिन्दया ॥पृ.36॥ कल्याण मन्दिर स्तोत्र के अन्तिम श्लोक में स्थानकवासियों के अनुसार समस्त आगमों और उपांगों के हिन्दी अनुवाद अपने द्वारा किये जाने का भी पं. मूलचन्द्र शास्त्री ने संकेत किया है येन - हिन्द्यामनूदिताः स्थानकवासिसम्मताः । आगमा अखिला प्रायश्चोपाङ्गान्यपि कानिचित् ॥ भक्तामर स्तोत्र के अन्त में श्री शास्त्री जी ने कवि कालिदास कृत मेघदूत के अन्त्यपाद की पूर्ति करते हुए " वचनदूतम्" काव्य की अपने द्वारा रचना किये जाने का स्वयं उल्लेख किया है मेघदूतान्त्यपादानां काव्यं वचनदूताख्यं समस्यापूर्तिरूपकं, येनाल्पमेधसा ।। पृ. 76।। रम्यं इन उल्लेखो के आलोक में ऐसा ज्ञात होता है कि पं. मूलचन्द्र जी शास्त्री द्वारा रचित इसी की अनठी साहित्यिक जैन रचना "वर्द्धमान चम्पू" काव्य उक्त रचनाओं के
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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