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जिन्होंने स्वयं अपनी आत्मा में देख लिया
ऐसे लोकनायक महावीर ही आनन्द देने में
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सक्षम है । वे ध्यानशील, प्रमुक्त, तत्त्वदर्शी, दयालु और त्रिकालज्ञ हैं । उन्होंने अपने हाथों | में कृपाण धारण करके अघाति कर्मों को नष्ट किया है । आनन्द देने वाले महावीर स्वामी की जय हो ।
बाहुबल्यष्टकम्४३ :
आकार
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'बाहुबल्यष्टकम् " आठ श्लोकों में निबद्ध स्फुट रचना है ।
नामकरण
भगवान बाहुबली के तपश्चरण का आठ पद्यों में विवेचन होने के कारण 'बाहुबल्यष्टकम्'' शीर्षक तर्कसङ्गत है ।
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रचनाकार का उद्देश्य - प्रत्येक पद्य के अन्त में प्रयुक्त "तं सदाहं नमामि " से स्पष्ट है कि भगवान बाहुबली रचनाकार की आस्था के केन्द्र हैं और इसी की अभिव्यक्ति इस कृति में है ।
स्याद्वादसिन्धुरमितः विद्याविलाससहितो वर्णीन्द्रवर्णितगुणः
अनुशीलन
सुनन्दा सुत भगवान बाहुबली राज्य सुख में विरक्ति धारण करने वाले तपस्वी हैं । जिन्होंने तपश्चरण काल में जल त्याग कर दिया । शीतादि बाधाओं को सहते हुए सदा मोक्ष की सिद्धि हेतु ध्यान मग्न, रहने वाले सुनन्दासुत को सदैव नमन करता हूँ। महाबोध और मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति होने के पश्चात् देव वृन्दों द्वारा संस्तुत्य (स्तुति किये गये) सुनन्दा सुत भौतिक बाधाओं को नष्ट करने वाले हैं - उन्हें मैं सदैव प्रणाम करता हूँ। डॉ. साहित्याचार्य की स्फुट रचनाओं में एक रचना श्री गणेश प्रसाद वर्णी स्मृति ग्रन्थ में प्रकाशित है । इस रचना में परम पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी जी की संक्षिप्त जीवन झांकी चित्रित की गयी हैं । चिरोंजाबाई को रचनाकार ने शान्तमूर्ति, जनहित वर्धिनी, विद्वानों द्वारा वन्ध बताकर सम्पूर्ण आगमों के ज्ञाता वर्णी जी जैसे पुत्र की धर्म माता बनने का संयोग प्राप्त होने से इस पृथिवी पर उन्हें सौभाग्य शालिनी मानते हुए धन्य-धन्य माना है जयति जगति धन्या धन्या सा चिरोंजाभिधेया, विविध विबुधवन्द्या धर्ममाता निखिलनिगमविद्याभास्करं
त्वदीया I
या
भवन्तं,
सकलजनहितायोद्वर्धयामास
शान्तम् ॥३॥
पूज्य वर्णी जी को रचनाकार ने बड़े ही श्रद्धा भाव से देखा है। उनके गुणों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया है कि उनकी महिमा अजेय है, वे गुण-गरिमा के भण्डार हैं, स्याद्वादसिद्धान्त के गम्भीर ज्ञाता, सब प्रकार से शान्त, विद्या - विलास से सहित है। साधुओं के गुणों में श्रेष्ठ हैं । कवि ने उनके दीर्घायुष्य की कामना करते हुए लिखा है
जीयादजेयमहिमा
गुणानां,
गरिमा
धमितः
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महितो
समन्तान् । मरुद्भि,
गणेशः ॥7॥
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प्रगुणो
न्यायाचार्य उपाधि से विभूषित पूज्य वर्णी जी गुणों और स्याद्वाद निधि से रत्नाकर स्वरूप
थे । उनके पूर्ण यश का वर्णन सहस्र रसनाधारी शेषनाग भी करने में समर्थ नहीं है । रचनाकार
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तो कर ही क्या सकेंगे । यहाँ जो कुछ कहा गया है, वह केवल पूज्य वर्णी जी के चरण• कमलों की भक्ति - पूजा वशात् ही कहा गया है । रचनाकार ने स्वयं लिखा है।