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बचपन, यौवन में तथा कृषि, वाणिज्य, न्यायालादि में छल-बल, बसन्त-हेमन्त काल में प्रभावित काम चेष्टाओं आदि से उत्पन्न पापों का शमन कीजिए । प्रमादवश किये गये मेरे सभी प्रकार के अपराधों, पर निंदा, कुटिलता आदि मेरे समस्त दोषों का परिहार कीजिए । .
आर्त, रौद्र ध्यान को त्याग कर जीव-जीवन में साम्य भाव का व्यवहार करूँ, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वृक्ष के मध्य सभी जीवमात्र के प्रति क्षमाभाव धारण कर सकूँ। माता, पिता, बन्धु, पुत्र, मित्र, भार्या, साला, स्वामी, सेवकादि के प्रति समानता भावरखू- अर्थात् आत्मवत् व्यवहार करूँ । ऋषभदेव, अजितेश्वर, पद्मप्रभु, चन्द्रभव, श्री पुष्पदन्त, कुन्थुसागर, धर्मनाथ, श्री सुव्रत, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि तीर्थङ्करों का स्तवन मोक्ष दायक हैं । आत्म शान्ति की प्राप्ति के लिए निरन्तर उपयोगी है । हे वीर, हे गुणनिधि, त्रिशलापुत्र, हे दयालु संसार समुद्र से निकालकर मुझे शरण दीजिए। हे वर्धमान स्वच्छ.छवि, विमल कीर्ति, उदार, देवों द्वारा संतुल्य त्रिशलातनय जिनेश्वर आपकी वन्दना करता हूँ । वीर्य, खून, मल-मूत्र, समूह से युक्त नश्वर, विविध रोगों से युक्त काया दु:खद है । जीव भ्रमण करते हुए इसमें आकर निवास करता है । शरीर से पापों का परिहार करना चाहिए । काया, चित्त वचन की पवित्रता मानव जीवन की सफलता हैं। इस काया को मोक्ष की सिद्धि में लगाना चाहिए । "स्फुट रचनाएँ" - डॉ. (पं.) पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने अनेक स्फुट-रचनाओं का भी सृजन करके साहित्य की श्रीवृद्धि की है । उनके द्वारा निबद्द स्फुट कृतियों का भावात्मक अनुशीलन अधोलिखित
महावीर स्तवनम् :
आकार - यह पाँच श्लोकों में निबद्ध लघु काव्य रचना है ।
नामकरण - इसमें तीर्थङ्कर महावीर स्वामी की स्तुति होने के कारण इसका "महावीर स्तवनम्" नाम सार्थक है ।
रचनाकार का उद्देश्य - महावीर स्वामी के स्तवन से आत्म शान्ति की प्राप्ति ही रचनाकार का प्रधान उददेश्य है ।
अनुशीलन - भगवान महावीर समुद्रवत् गंभीर, धीर, वीर, सर्वगुण सम्पन्न, पवित्रता के प्रतीक काम कुचालों के नाशक, काल जयी महापुरुष हैं । तत्त्ववेत्ता, कामादि विकारों के शत्रु महावीर स्वामी की जय हो । महावीर स्तोत्रम् :
आकार - "महावीर स्तोत्रम्' दश श्लोकों में निबद्ध लघु काव्य रचना है ।
नामकरण - तीर्थङ्कर महावीर स्वामी के गुणों की स्तुति की प्रस्तुति के कारण इसका | महावीर स्तोत्रम् नाम सार्थक है ।
रचनाकार का उद्देश्य - महावीर स्वामी के दिव्य व्यक्तित्व की स्तुति से उनके प्रति आध्यात्मिक आस्था की संतृप्ति ही रचनाकार का उद्देश्य प्रतीत होता है ।।
अनुशीलन - महावीर स्वामी गहरे संसार सागर में गिरने वाले व्यक्तियों को निकालकर आध्यात्मिक सुख प्रदान करने वाले आत्मतत्त्व के ज्ञाता हैं । सम्पूर्ण लोक और अलोक को।