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________________ 106 एवं शीलादि से मण्डित मुनीश्वर हैं । शिष्यों को तीर्थतुल्य और भक्तों के मार्गदर्शक हैं । उन्हें सादर नमन अर्पित है । __ आर्यिका विशुद्धमती माता जी ___ अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोगी, सर्वतोमुखी प्रतिभा और वैदुष्य मंडिता श्री 105 आर्यिका विशुद्धमति माता जी का गृहस्थावस्था का नाम सुश्री सुमित्रा बाई था । आपका जन्म जबलपुर जिले के "राठी" नगर में स्व. सिंघई लक्षमण प्रसादजी के घर हुआ । सुप्रतिष्ठित मनीषीश्री नीरज जी और श्री निर्मल जी आपके भाई हैं । प्रारम्भिक शिक्षा के उपरान्त आपने पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य से संस्कृत और प्राकृत भाषाओं तथा सिद्धान्त ग्रन्थों का अध्ययन किया। अध्ययन के उपरान्त वे सागर के श्री दिगम्बर जैन महिला आश्रम की प्राचार्य भी बनीं, आपके कार्यकाल में संस्था ने बहुमुखी प्रगति की। वे इसी संस्था में कार्य करते हुए निवृत्ति मार्ग की और अग्रसर हुई और पपौरा सिद्ध क्षेत्र में आचार्य शिवसागर से आपने दीक्षा ली । स्वाध्याय, चिन्तन, स्व-पर कल्याण साहित्य प्रणयन आपकी प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं । अपने त्रिलोकसार जैसे गहन गम्भीर सफल ग्रन्थराजों का सम्पादन और अनुवाद किया है । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में उनकी कतिपय स्फुट रचनाओं का अनुशीलन किया गया है। भाषा में हृदयहारी लावण्य और देशकाल की सांगोपांग विवृति प्रसाद गुणपूर्ण शैली में प्रस्तुति आपकी विशेषता है। "अष्टोत्तरशत नामस्तोत्रम्''९३६ । आकार - "अष्टोत्तरशत नामस्तोत्रम्" रचना संस्कृत के सोलह श्लोकों में निबद्ध स्तोत्र काव्य है। नामकरण - प्रस्तुत स्तोत्र में आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज को सविशेष शत नामों से सम्बोधित करने के कारण ही इस रचना का नामकरण "अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्रम्" किया गया है। रचनाकार का उद्देश्य - विवेच्य कृति के अन्तिम पद्य में प्रयुक्त "जीवन हितकारम्" का आशय यह है - कि प्राणियों के हित के लिए इस कृति का प्रणयन हुआ है । अनुशीलन - इस कृति में आचार्यवर धर्म सागर जी महाराज के गुणों, जीवनादर्शों एवं विशेषताओं की विवेचना है । उनके लिए प्रयुक्त प्रमुख उद्बोधन इस प्रकार है - भद्रमूर्ते धर्ममूर्ति, हितभाषी, मितभाषी, त्यागज्येष्ठ, तपोज्येष्ठ, गुणज्येष्ठ, वयोज्येष्ठ, महासुधी, महाव्रती, धर्मरक्षी, दयारक्षी, शिष्यरक्षी शीलरक्षी, सुनायक, सुतारक, आत्मज्ञानी, गुणज्ञ, अतन्द्राल, सौम्यमूर्ति, सुविज्ञानी, पञ्चाचारपरायण, निर्विकार, सुमेधस, आदि । अधोलिखित पद्य में भावुक निवेदन है "धर्माम्भोधि-र्दयाम्भोधिः, क्षमाम्भोधि-दिगम्बरः ज्ञानाम्भोधिः - कृपाम्मोधिः सिद्धान्ताम्बुधिः - चन्द्रमा इस प्रकार अष्टोत्तरशत नामस्तोत्र में एक मुनिवर का गुणानुवाद की सफल व्याख्या आर्यिका जिनमती माता जी आपका गृहस्थावस्था का नाम प्रभावती था । म्हसबड (महाराष्ट्र) आपकी जन्मभूमि है । श्री फूलचन्द जी आपके पिता और कस्तूरीबाई माता थी। कमड जाति को अपने जन्म
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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