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- 105 अन्म में परम् योग-सिद्धि के लिए अपने गुरु को नमन करते हुए कहा है - नमोऽस्तु गुरुवर्याय ! परमयोगसंसिद्धये । श्री पञ्चमेरु स्तुति'३३
आर्यिका श्री की "श्री पञ्चमेरु स्तुति" रचना स्तोत्रकाव्य है । यह 6 पद्यों में निबद्ध है । इसमें पाँच पर्वतों पर जिनालयों के स्थित होने के कारण उनकी महत्ता प्रतिपादित है। जिनेश्वरों द्वारा सेवित होने के कारण ये पञ्चमेरु दर्शनीय, पवित्र और पूज्य हैं । इनके दर्शन करने से मानव जीवन की समस्याओं का निराकरण होता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। सः जयतु गुरुवर्य:१३४
आकार - "स: जयतु गुरुवर्यः" रचना संस्कृत के ग्यारह श्लोकों में निबद्ध स्फुट काव्य है ।
नामकरण - रचयित्री ने अपने गुरुवर की विजय कामना करने के कारण ही इसका नामकरण "सः जयतु गुरुवर्यः" किया है।
रचनाकार का उद्देश्य - आचार्य धर्मसागर जी के जीवनादर्शों से जनजीवन को अवगत कराना ही रचना के सृजन का मूलाधार है ।
अनुशीलन - प्रस्तुत कृति के आधार पर कहा जा सकता है - कि आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज राजस्थान के गम्भीर ग्राम में खंडेलवाल कुल, छाबड़ा गौत्र के श्री बख्तावरमल नामक व्यापरी के यहाँ उत्पन्न हुए - आपकी माँ का नाम उमराबाई है । आचार्य श्री का जन्म पौष पूर्णिमा को हुआ । आपके बचपन का नाम चिरंजीलाल है । गुरुवर चन्द्रसागर से आपने क्षल्लक तथा वीरसागर जी के सान्निध्य में ऐलकत्व धारण किया । इस प्रकार आप "धर्मसागर" के नाम से जाने गये। .
सिद्धक्षेत्र चन्दन ग्राम में कार्तिक माह की पूर्णिमा को आचार्य शिवसागर जी महाराज ने उत्तराधिकार स्वरूप अपना आचार्य पद आपको सौंप दिया । ५. इस प्रकार प्रस्तुत कृति में आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के जीवनक्रम का संक्षिप्त विवेचन है ।
"तं धर्मसागरमुनीन्द्रमहं प्रवन्द' 135 (श्री धर्मसागराष्टकम् )
आकार - तं धर्मसागरमुनीन्द्रं प्रवन्दे" नामक कृति आठ श्लोकों में आबद्ध स्पष्ट काव्य है।
नामकरण - मुनिवर धर्मसागर जी महाराज के प्रत्येक छन्द की अन्तिम पंक्ति में सादर नमन करने के कारण रचना का नामकरण "तं धर्मसागरमुनीन्द्रं प्रवन्दे" सर्वथा उचित है।
रचनाकार का उद्देश्य - यद्यपि रचयित्री को आचार्य श्री से सङ्ग में सम्मिलित होने का गौरव प्राप्त है अत: आचार्य श्री के प्रति जाग्रत श्रद्धा, भक्ति भाव ही प्रस्तुत कृति के सृजन का मूलोद्देश्य है ।
___ अनुशीलन - आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज मिथ्यात्व के नाशक, धीर-वीर गम्भीर, | क्रोध जीतने वाले शून, मुक्ति पथ के साधक, अध्यात्म के ज्ञाता, जितेन्द्रय स्वाध्यायी, सम्यक्त्व