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अर्थात् धन, बुद्धि, समय और शक्ति का प्राणियों के कल्याणार्थ उपयोग कराने की शिक्षा देनेवाला धर्म ही "जैनधर्म" या विश्वधर्म है । जैन धर्म का इस रीति से पालन करने पर सम्पूर्ण प्राणी अपने आत्मरस का पान कर सकेंगे और अपनी आत्मा में रहे हुए चिदानंद शुद्ध चैतन्य रूप सुख का अनुभव भी करेंगे । विश्व में सर्वत्र शान्ति हो-यही हमारा ध्येय है ।
आचार्य १०८ श्री अजितसागर महाराज परिचय - आपका जन्म विक्रम सवत् 1982 में भोपाल के आष्टा कस्वे के समीप भौरा ग्राम में हुआ था । श्री जवरचन्द्र जी पद्मावती पुरवाल इनके पिता और रूपाबाई माता थी । पिता ने आपका नाम राजमल रखा था । आपके तीन बड़े भाई हैं-श्री केशरीमल, श्री मिश्रीलाल और श्री सरदारमल ।
आप 17 वर्ष की उम्र में ही आचार्य वीरसागर महाराज के सङ्घ में सम्मिलित हो गये थे । संवत् 2002 में आपने महाराज श्री से ब्रह्मचर्य व्रत अङ्गीकार किया और आगम का ज्ञान प्राप्त किया । आपकी प्रवचन और लेखन शैली से प्रभावित होकर समाज ने आपको विद्या वारिधि पद से सुशोभित किया था ।
वैराग्य बढ़ने पर आपने संवत् 2018 कार्तिक सुदी चतुर्थी के दिन सीकर नगर में आचार्य श्री शिवसागर जी से मुनि दीक्षा ली थी । इस समय आपका नाम अजितसागर रखा गया था. आ. कल्प श्री श्रुतसागर महाराज के आदेश से आपको आचार्य पद (7 जून 1987 को उदयपुर में) पर प्रतिष्ठित किया गया । वैदुष्य
आपका संस्कृत ज्ञान परिपक्व एवं अनुपम था । आपने निरन्तर कठोर अध्ययन एवं मनन से आपने बड़े-बड़े विद्वानों को भी आश्चर्य चकित कर दिया था ।13 आचार्य श्री का समाधिपूर्वक मरण हो गया है । संस्कृत रचना
आपकी एक छोटी सी रचना आचार्य शिवसागर के प्रति "सूरिं प्रवन्दे शिवसागरं तम्" शीर्षक से प्रकाशित हुई है ।14
प्रस्तुत रचना में पाँच श्लोक है । इनमें आपने अपने दीक्षा गुरु को नमन करते हुए उनकी विशेषताओं का उल्लेख किया है । आपने लिखा है कि आचार्य शिवसागर महाराज का ध्यान एकाग्रतापूर्वक होता था, वे गुणों के निधान थे, अभिमान नाम मात्र को न रह गया था, दुर्गणों की क्षति करने में रत वे मोक्ष की और प्रवृत्तिवान थे. उनकी महान पुरुष स्तुति करते थे । आचार्य के भाव ये इस प्रकार व्यक्त हुए हैं।
ध्यानैकतानं सुगुणैकधानं ध्वक्ताभिमानं दुरिताभिहानम् मोक्षाभियानं महनीयगानं सूरि प्रवन्दे शिवसागरं तम् ।।
प्रस्तुत पद्य में अन्त्यानुप्रास आचार्य श्री के संस्कृत ज्ञान की प्रौढ़ता प्रकट करता है वे संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे । इस छोटी रचना के द्वारा भी संस्कृत साहित्य की वृद्धि हुई है । आपके द्वारा संकलित सार्वजनोपयोगी श्लोक संग्रह भी प्रकाशित है ।