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लेकिन यह मान लेना कि महावीर अथवा बुद्ध के समकालीन विचारकों में आत्मा-सम्बन्धी दार्शनिक सिद्धान्त ही नही थे यह एक भ्रान्त धारणा है।
मेरी यह स्पष्ट धारणा है कि महावीर के समकालीन विभिन्न विचारकों की आत्मवाद सम्बन्धी विभिन्न धारणायें थीं। कोई उसे सूक्ष्म कहता था, तो कोई उसे विभु। किसी के अनुसार आत्मा नित्य थी, तो कोई उसे क्षणिक मानता था। कुछ विचारक उसे (आत्मा की) कर्ता मानते थे, तो दूसरे उसे निष्क्रिय एवं कूटस्थ मानते थे। इन्हीं विभिन्न आत्मवादों की अपूर्णता एवं नैतिक व्यवस्था को प्रस्तुत करने की अक्षमताओं के कारण ही तीन नये विचार सामने आये- एक और था उपनिषदों का सर्व आत्मवाद या ब्रह्मवाद, दूसरी और था बुद्ध का अनात्मवाद और तीसरी विचारणा थी जैन आत्मवाद की जिसने इन विभिन्न आत्मवादों को एक जगह समन्वित करने का प्रयास किया।
इन विभिन्न आत्मवादों की समालोचना के पूर्व इनके अस्तित्व-सम्बन्धी प्रमाण प्रस्तुत किये जाने आवश्यक हैं। बौद्ध पालि-आगम-साहित्य, जैन-आगम एवं उपनिषदों के विभिन्न प्रसंग इस संदर्भ में कुछ तथ्य प्रस्तुत करते हैं। बौद्ध-पालि-आगम के अन्तर्गत सुत्तपिटक में दीर्घनिकाय के ब्रह्मजाल सुत्त एवं मज्झिम निकाय के चूल सारोपमसुत्त में इन आत्मवादों के सम्बन्ध में कुछ जानकारी प्राप्त होती है। यद्यपि उपर्युक्त सुत्तों में हमें जो जानकारी प्राप्त होती है, वह बाह्यतः नैतिक आचारसम्बन्धी प्रतीत होती है, लेकिन यह जिस रूप में प्रस्तुत की गई है उसे देखकर हमें गहन विवेचना में उतरना होता है, जो अन्ततोगत्वा हमें किसी आत्मवाद-सम्बन्धी दार्शनिक निर्णय पर पहुंचा देती है।
__पालि आगम में बुद्ध के समकालीन इन आचार्यों को जहां एक ओर गणाधिपति, गण के आचार्य, प्रसिद्ध यशस्वी, तीर्थकर तथा बहुजनों द्वारा सुसम्मत कहा गया है, वहीं दूसरी ओर उनके नैतिक सिद्धान्तों को इतने गर्हित एवं निन्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है कि साधारण बुद्धि वाला मनुष्य भी इनकी ओर आकृष्ट नहीं हो सकता। अतः यह स्वाभाविक रूप से शंका उपस्थित होती है कि क्या ऐसी निन्थ नैतिकता का उपदेश देने वाला व्यक्ति लोक सम्मानित धर्माचार्य हो सकता है, लोकपूजित हो सकता है?
यही नहीं कि ये आचार्यगण लोकपूजित ही थे वरन् वे आध्यात्मिक विकास के निमित्त विभिन्न साधनायें भी करते थे, उनके शिष्य एवं उपासक भी थे। उपरोक्त तथ्य किसी निष्पक्ष गहन विचारणा की अपेक्षा करते हैं, जो इसके पीछे रहे हुए सत्य का उद्घाटन कर सके।
जैन तत्त्वदर्शन