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महावीर के समकालीन आत्मवाद एवं
जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य
धर्म और नैतिकता आत्मा सम्बन्धी दार्शनिक मान्यताओं पर अधिष्ठित रहते है। किसी भी धर्म एवं उसकी नैतिक विचारणा को उसके आत्म सम्बन्धी सिद्धान्त के अभाव में समुचित रूप से नहीं समझा जा सकता। महावीर के धर्म एवं नैतिक सिद्धांतों के औचित्य स्थापन के पूर्व उनके आत्मवाद का औचित्य-स्थापन आवश्यक है। साथ ही महावीर के आत्मवाद को समझने के लिये उनके समकालीन विभिन्न आत्मवादों का समालोचनात्मक अध्ययन भी आवश्यक है।
भारतीय आत्मवादों के सम्बन्ध में वर्तमान युग में श्री ए.सी. मुकर्जी ने अपनी पुस्तक The nature of self एवं श्री एस.के. सक्सेना ने अपनी पुस्तक Nature of consciousness in Hindu Philosophy paar febenn arabt उन्होंने महावीर के समकालीन आत्मवादों पर समुचित रूप से कोई विचार नहीं किया है। श्री धर्मानन्द कौशम्बी जी के द्वारा अपनी पुस्तक 'भगवान बुद्ध' में यद्यपि इस प्रकार का एक लघु प्रयास अवश्य है फिर भी इस सम्बन्ध में एक व्यवस्थित अध्ययन आवश्यक है।
___पाश्चात्य एवं कुछ आधुनिक भारतीय विचारकों की यह मान्यता है कि महावीर एवं बुद्ध के समकालीन विचारकों में आत्मवाद सम्बन्धी कोई निश्चित दर्शन नहीं था। तत्कालीन सभी ब्राम्हण और श्रमण मतवाद केवल नैतिक-विचारणाओं एवं कर्मकाण्डी-व्यवस्थाओं को प्रस्तुत करते थे। सम्भवतः इस धारणा का आधार तत्कालीन औपनिषदिक साहित्य है, जिसमें आत्मवाद सम्बन्धी विभिन्न परिकल्पनायें, किसी एक आत्मवादी सिद्धान्त के विकास के निमित्त संकलित की जा रही थीं। उपनिषदों का आत्मवाद विभिन्न श्रमण-परम्पराओं के आत्मवादी सिद्धान्तों से स्पष्ट रूप से प्रभावित है उपनिषदों में आत्मा-सम्बन्धी परस्पर विपरीत धारणायें जिस बीज रूप में विद्यमान हैं वह इस तथ्य की पुष्टि का सबल प्रमाण है। हां, इन विभिन्न आत्मवादों की धारणा में संयोजित करने का प्रयास उनका अपना मौलिक है।
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान