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________________ 34. जैन एवं बौद्धधर्म में स्वहित एवं लोकहित का प्रश्न (210604), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 35. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शन की शोध संक्षेपिका, तुलसीप्रज्ञा, अंक 5 36. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों में कर्म का शुभत्व, अशुभत्व और शुद्धत्व, महावीर जयन्तीस्मारिका, जयपुर 1978 37. जैनकर्म सिद्धान्त एक विश्लेषण ( 210616), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 38. जैनधर्म में नैतिक और धार्मिक कर्त्तव्यता का स्वरूप ( 210635), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 39. जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान ( 210655 ), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 40. जैनदर्शन में आत्मा : स्वरूप एवं विश्लेषण सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, (210679), पा.वि. वाराणसी 41. जैनदर्शन में तर्क प्रमाण का आधुनिक संदर्भ में मूल्यांकन, दार्शनिक, अक्टूबर 1978 42. जैनदर्शन में ज्ञान के प्रामाण्य और कथन की सत्यता का प्रश्न (210390), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 43. जैनदर्शन में निश्चय एवं व्यवहार नय, दार्शनिक त्रैमासिक, जुलाई 1974 44. जैनदर्शन में नैतिक मूल्यांकन का विषय ( 210697), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 45. जैनदर्शन में नैतिकता की सापेक्षता और निरपेक्षता ( 210398), मुनि द्वय अभिनन्दन ग्रन्थ 46. जैनदर्शन में पुद्गल और परमाणु ( 210702), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 47. जैनदर्शन में मिथ्यात्व और सम्यक्त्व : एक तुलनात्मक विवेचन ( 210710), जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ 48. जैनदर्शन में मोक्ष का स्वरूप : एक तुलनात्मक अध्ययन (210710), तीर्थंकर महावीर स्मृति ग्रन्थ 49. जैनदृष्टि में धर्म का स्वरूप ( 210729), लेखेन्द्रशेखरविजय अभिनन्दन ग्रन्थ 50. जैनधर्म और सामाजिक समता ( 210742), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 51. जैनधर्म में स्वाध्याय का अर्थ, श्रमण, 1994 सागरमल जीवनवृत्त 685
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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