SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12. एतस्य त्रयः स्वामिनश्चतुर्थ-पञ्चम षष्ठ गुणस्थानवर्तिनः ...। तत्त्वार्थाधिगमसूत्र (सिद्धसेन गणिकृत भाष्यानुसारिणिका समलंकृतं - सं. हीरालाल रसिकलाल कापडिया ) 9 / 35 की टीका । 13. श्रीतत्वार्थसूत्रम् (टीका - हरिभद्र), ऋषभदेव केशरीमल संस्था सं. 1992, पृ.465-466. 14. सम्यग्दृष्टिश्रावक विरतान्नतवियोजकदर्शनमोहक्षप्कोपशमकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाःक्रमशो संख्येयगुणनिर्जराः 9/47, तत्त्वार्थसूत्र, नवम् अध्याय, पृ. 136, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वारणसी 1985. 15. जैन साहित्य और इतिहास (पं. नाथूरामजी प्रेमी) पृ. 524-529। 16. देखें - (अ) जैन साहित्य का इतिहास द्वितीय भाग, (पं. कैलाशचंद्रजी) चतुर्थ अध्याय पृ. 294-299। (ब) जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश (पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार), पृ. सं. 125-149 (स) तीर्थकर महावीर औरउनकी आचार्य परम्परा, भाग-2 (डॉ. नेमीचन्दजी) (द) सर्वार्थसिद्धि-भूमिका, पं. फूलचन्द जी सिद्धान्ताशास्त्री, पृ. 31-46/ 17. देखें - सर्वार्थसिद्धि-- सं.- पं. फूलचन्द सिद्धान्ताशास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ ( 1955 1/8; पृ. 31-33, 34, 46, 55-56, 65-67, 84-85, 881 18. (अ) णाहं मग्गणाठाणो णाहं गुणठाण जीवठाणो ण । काइदा अणुमंता व कत्तीणं । । कत्ता नियमसार गाथा 77, प्रकाशक- पंडित अजित प्रसाद, दि सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, लखनऊ 1931। (ब) णेव या जीवट्ठाणा ण गुणट्ठाणा य अत्थि जीवस्स । जे टु एदे सब्वे पुग्गलदव्यस्स परिणामा ।। समयसार, गा. 55, प्रका. - श्री म. ही. पाटनी दि. जैन पार. ट्रस्ट मारोठ (मारवाड़) 1953 । 19. सूक्ष्मसम्परायच्छह्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश । 110 11 एकादश जिने । ।11।। बादरसम्पराये सर्वे ।।12।। तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय 9, विवेचक पं. सुखलालजी 20. तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् । ।35 ।। हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेखविरतयोः ।।36।। आज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य 1137 11 उपशान्तक्षीणकषाययोश्च ।।38 ।। शुक्ले चा पूर्व विदः ।।39 ।। परे केवलिनः । 140 ।। - तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय 9 21. सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्त मोहक्षपकक्षीणमोजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः ।।47 ।। - तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 9 22. कसायपाहुडसुत्त सं. पं. हीरालाल जैन- वीरशासन संघ, कलकत्ता 1958। देखें सम्मत्तदेसविरयी संजम उवसामणाचखवणा च । दंसण-चरित्तमोहे अद्धापरिमाणणिद्देसो ।।14।। जैन धर्मदर्शन 441
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy