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________________ सम्मत्ते मिच्छत्ते य मिस्सगे चेव बौद्धव्या।।82।। विरदीय अविरदीए विरदाविरदे तहा अणगारे।।83 ।। दसणमोहस्स उवसामगस्स परिणामोकेरिसो भवेः।।91 ।। दसणमोहक्खवणा पट्ठवगो कम्मभूमि जादो तु।।110।। सुहुमे च सम्पराए बादररागे च बौद्धव्वा।।121 । उवसामणा खएण दु पडिवदि दो होइ सुहम रागम्मि।।122।। खीणेसु कसाएसु य सेसाण केव होंति विचारा।।132।। संकामणयोवट्ठण किट्ठी खवणाए खीण मोहते। खवणा य आणुपुव्वी बोद्धव्वा मोहणीयस्स ।।233 ।। 23. विस्तृत विवरण हेतु देखें जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन भाग 2, डॉ सागरमल जैन, प्राकृत भारती, जयपुर, पृ. 471-478 एवं पृ. 487-4881 .... चिदचिद् द्वे परे तत्त्वे, विवेकस्तद्विवेचनम् उपादेयमुपादेयं, हेयं हेयं च सर्वतः। हेयं तु कर्तृरागादि, तत्कार्यमविवेकिनः, उपादेयं परं ज्योतिरूपयोगैक लक्षणम् ।। - पद्मनंदि उत्तराध्ययन के दो संदर्भ - . 1. करकंडू कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहो। -- नमी राया विदेहेसु गंधारेसु य नग्गई ।।45 ।। एए नरिंदवसभा विक्खंता जिणसासणे। पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं सामण्णे पुज्जुवट्ठिया।।46 ।। सोवीररायवसभो 'चेच्चा रज्ज' मुणी चरे। उद्दायणो पव्वड़ओ पत्तो गइमणुत्तरं।।46 ।। - अट्ठारसमं अज्झयणं (संजइज्ज) 2. चपाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए। महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महप्पणो।।1।। निग्गंथे पावयणे सावए से विकोविए। पोएण ववहरते पिहुंडं नगरमागए।।2।। पिहुंडे ववहरंतस्स वाणिओ देइ घूयरं। तं ससत्तं पइगिज्झ सदेसमह पत्थिओ।।3।। अह पालियस्य धरणी समुद्दमि पसवई। अह 'दारए तहिं जाए समुद्दपालि त्ति नामए।।4।। - एगविंसइमं अज्झयणं (समुद्दपालीय) उक्त दोनों प्रसंग कलिंग और कलिंग के बन्दरगाह पिहुंड नगर का उल्लेख करते है। प्रसंग क्रमांक-1 में बताया गया है कि जब कलिंग में करकंडू का शासन था तो पांचाल में दमुर्ख, विदेह में निमि और गांधार में नग्नजित् शासक थे और इन चारों राज्यों में जिनशासन था। ऐतरेय ब्राह्मण (7.34) के हवाले से यह संदर्भ महाभारत पूर्व माना जा सकता है। जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान 442
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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