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जन्म-मृत्यु का चक्रव्यूह
८३ जब तक आत्मा कर्म-मुक्त नहीं होती, तब तक उसकी जन्म-मरण की परम्परा नहीं रुकती। मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है। जन्म का अर्थ है उत्पन्न होना। सब जीवों का उत्पत्ति-क्रम एक-सा नहीं होता। अनेक जातियां हैं, अनेक योनियाँ हैं और अनेक कुल हैं। प्रत्येक प्राणी के उत्पत्ति-स्थान में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श का कुछ न कुछ तारतम्य होता ही है। फिर भी उत्पत्ति की प्रक्रियाएँ अनेक नहीं हैं। सब प्राणी तीन प्रकार से उत्पन्न होते हैं। अतएव जन्म के तीन प्रकार बतलाए गए हैं—सम्मूर्च्छन, गर्भ और उपपात ।
जिनका उत्पत्ति-स्थान नियत नहीं होता और जो गर्भ धारण नहीं करते, उन जीवों की उत्पत्ति को ‘सम्मूर्च्छन' कहते हैं। एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक सब जीव सम्मूर्च्छन जन्म वाले होते हैं। कई तिर्यंच पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य के मल-मूत्र, श्लेष्म आदि चौदह स्थानों में उत्पन्न होने वाले पंचेन्द्रिय मनुष्य भी सम्मूर्छनज होते हैं।
स्त्री-पुरुष के रज-वीर्य से जिनकी उत्पत्ति गर्भ में होती है, उनके जन्म का नाम गर्भज है। अण्डज, पोतज और जरायुज पंचेन्द्रिय प्राणी गर्भज होते हैं।
जिनका उत्पत्ति-स्थान नियत होता है, उनका जन्म ‘उपपात' कहलाता है। देव और नारक उपपात-जन्मा होते हैं। नारकों के लिए कुम्भी (छोटे मुंह की कुण्ड) और देवता के लिए शय्याएँ नियत होती हैं। वे अन्तर-मुहूर्त में (४८ मिनट के भीतर) युवा हो जाते हैं।
प्राणी सचित्त और अचित्त दोनों प्रकार के शरीर में उत्पन्न होते हैं। गर्भ
प्राणी की उत्पत्ति का पहला रूप दूसरे में छिपा होता है, इसलिए उस दशा का नाम 'गर्भ' हो गया। जीवन का अन्तिम छोर जैसे मौत है, वैसे उसका आदि छोर गर्भ है। मौत के बाद क्या होगा—यह जैसे अज्ञात रहता है, वैसे ही गर्भ से पहले क्या था—यह अज्ञात रहता है। उन दोनों के बारे में विवाद है। गर्भ प्रत्यक्ष है, इसलिए यह निर्विवाद है।
मौत क्षण भर के लिए आती है। गर्भ महीनों तक चलता है इसलिए जैसे मौत अन्तिम दशा का प्रतिनिधित्व करती है, वैसे गर्भ जीवन के आरम्भ का पूरा प्रतिनिधित्व नहीं करता, इसलिए प्रारम्भिक दशा का प्रतिनिधि शब्द और चुनना. पड़ा। वह है-'जन्म' । 'जन्म' ठीक जीवन की आदि-रेखा का अर्थ देता है। जो प्राणी है, वह जन्म लेकर ही हमारे सामने आता है।
सम्मूर्छन प्राणी-वर्गों में मानसिक विकास नहीं होता। गर्भज जीवों में मानसिक विकास होता है। इस दृष्टि से समनस्क जीव की जन्म-प्रक्रिया 'गर्भ'