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________________ ८१ विश्व : विकास और हास विभिन्न प्रतिक्रियाएँ होती हैं । संगठित दशा में हमें तत्काल उनका असर मालूम पड़ता है। असंगठित दशा और सूक्ष्म रूप में उनका जो असर हमारे ऊपर होता है, उसे हम पकड़ नहीं सकते । ज्योतिर्विद्या में उल्का की और योग - विद्या में विविध रंगों की प्रतिक्रिया भी उनकी रश्मियों के प्रभाव से होती है । यह बाहरी असर है। अपनी आन्तरिक वृत्तियों का भी अपने पर प्रभाव पड़ता है 1 ध्यान या मानसिक एकाग्रता से चंचलता की कमी होती है, आत्म-शक्ति का विकास होता है । मन की चंचलता से जो शक्ति बिखर जाती है, वह ध्यान से केन्द्रित होती है इसीलिए आत्म-विकास में मनोगुप्ति वचन- गुप्ति और कायगुप्ति का बड़ा महत्त्व है । मानसिक अनिष्ट चिन्तन से प्रतिमूल वर्गणाएँ गृहीत होती हैं, उनका स्वास्थ्य पर हानिजनक प्रभाव होता है । प्रसन्न दशा में अनुकूल वर्गणाएँ अनुकूल प्रभाव डालती हैं । क्रोध आदि वर्गणाओं की भी ऐसी ही स्थिति है । ये वर्गणाएँ समूचे लोक में भरी पड़ी हैं। इनकी बनावट अलग-अलग ढंग की होती हैं और उनके अनुसार ही ये निमित्त बनती हैं । अभ्यास १. विश्व- स्थिति के मूल सूत्रों को समझाइए । २. स्थावर जीवों के चैतन्य स्वरूप को स्पष्ट करें । ३. प्राणी के जन्म से जीवन पर्यन्त उस पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों के निमित्तों को स्पष्ट करें । ४. त्रस - प्राणी किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं ? 000
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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