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विश्व : विकास और ह्रास शारीरिक परिवर्तन का ह्रास या उल्टा क्रम
पारिपार्श्विक वातावरण या बाहरी स्थितियों के कारण जैसे विकास या प्रगति होती है, वैसे ही उसके बदलने पर ह्रास या पूर्व-गति भी होती है।
दो जाति के प्राणियों के संगम से तीसरी एक नयी जाति पैदा होती है। उस मिश्र जाति में दोनों के स्वभाव मिलते हैं, किन्तु यह' भी शारीरिक भेद वाली उपजाति है। आत्मिक ज्ञानकृत जैसे ऐन्द्रियक और मानसिक शक्ति का भेद उसमें नहीं होता। जाति-भेद का मूल कारण है-आत्मिक विकास । इन्द्रियाँ, स्पष्ट भाषा
और मन, इनका परिवर्तन मिश्रण और काल-क्रम से नहीं होता। एक स्त्री के गर्भ में 'गर्भ-प्रतिबिम्ब' पैदा होता है, जिसके रूप भिन्न-भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। आकृति-भेद की समस्या जाति-भेद में मौलिक नहीं है। प्रभाव के निमित्त
एक प्राणी पर माता-पिता का, आसपास के वातावरण का, देश-काल की सीमा का, खान-पान का और ग्रहों-उपग्रहों का अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसमें कोई संदेह नहीं। इसके जो निमित्त हैं, उन पर जैन-दृष्टि का क्या निर्णय है-यह थोड़े में जानना है।
प्रभावित स्थितियों को वर्गीकृत कर हम दो मान लें—शरीर और बुद्धि। ये सारे निमित्त इन दोनों को प्रभावित करते हैं।
प्रत्येक प्राणी आत्मा और शरीर का एक संयुक्त रूप होता है। प्रत्येक प्राणी को आत्मिक शक्ति का विकास और उसकी अभिव्यक्ति के निमित्तभूत शारीरिक साधन उपलब्ध होते हैं।
___ आत्मा सूक्ष्म शरीर का प्रवर्तक है और सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर का । बाहरी स्थितियाँ स्थूल शरीर को प्रभावित करती हैं, स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर को और सूक्ष्म शरीर आत्मा को-इन्द्रिय, मन या चेतन वृत्तियों को।
शरीर पौद्गलिक होते हैं—सूक्ष्म शरीर सूक्ष्म वर्गणाओं का संगठन होता है और स्थूल शरीर स्थूल वर्गणाओं का।
१. आनुवंशिक समानता का कारण है-वर्गणा का साम्य । जन्म के आरम्भ-काल में जीव जो आहार लेता है, वह उसके जीवन का मूल आधार होता है। वे वर्गणाएँ मातृ-पितृ-सात्म्य होती हैं, इसलिए माता और पिता का उस पर प्रभाव होता है। सन्तान के शरीर में मांस, रक्त और मस्तुलुंग (भेजा)-ये तीन अंग माता के और अस्थि-मज्जा, केश-दाढ़ी और रोम-नख-ये तीन अंग पिता के होते हैं। वर्गणाओं का साम्य होने पर भी आंतरिक योग्यता समान नहीं होती।
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