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पहले अण्डा या पहले मुर्गी ?
विश्व के आदि-बिन्दु की जिज्ञासा
भगवान् महावीर के सामने अण्डा और मर्गी, जीव और अजीव, लोक और अलोक, भव्य और अभव्य, मुक्ति और संसार आदि को लेकर प्रश्न किए गए कि इनमें पहले कौन और पीछे कौन होता है। भगवान् महावीर ने उत्तर दिया कि इनमें से प्रत्येक युग्म के दोनों घटक पहले से हैं और पीछे रहेंगे-अनादि काल से हैं और अनन्त काल तक रहेंगे। इनमें पौर्वापर्य (पहले पीछे का क्रम) नहीं है। ये सभी शाश्वत भाव हैं। इनमें क्रम नहीं है। इस प्रकार ये सभी मूलत: अनादि हैं। लोक-अलोक का परिमाण
धर्म-द्रव्य और अधर्म-द्रव्य ससीम हैं--चौदह रज्जु'-परिणाम परिमित हैं इसलिए लोक भी सीमित है। लोकाकाश असंख्यप्रदेशी है। अलोक अनन्त-असीम है इसलिए अलोकाकाश अनन्त प्रदेशी है। लोक-अलोक का संस्थान
लोक सुप्रतिष्टक आकारवाला है। तीन शरावों या शिकोरों में से एक शराव ओंधा, दूसरा सीधा और तीसरा उसके ऊपर आधा रखने से जो आकाश बनता है, उसे सुप्रतिष्ठक संस्थान या त्रिशरावसंपुटसंस्थान कहा जाता है।
लोक नीचे विस्तृत है, मध्य में संकरा और ऊपर-ऊपर मृदंगाकार है। इसलिए उसका आकार ठीक त्रिशरावसंप्ट जैसा बनता है। अलोक का आकार बीच में पोलवाले गोले के समान है। अलोकाकाश एकाकार है। उसका कोई विभाग नहीं होता है। लोकाकाश तीन भागों में विभक्त है-ऊर्ध्व लोक, अधो लोक और मध्य लोक। लोक चौदह रज्जु लम्बा है। उसमें ऊँचा लोक सात रज्जु से कुछ कम है। तिरछा लोक अठारह सौ योजन प्रमाण है। नीचा लोक सात रज्जु से अधिक है। १. एक रज्जू के असंख्यात योजन होते हैं।