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________________ जैन दर्शन और संस्कृति - २. समान अंश वाले परमाणु, यदि वे सदृश हों-केवल स्निग्ध हों या केवल रुक्ष हों-मिलकर स्कन्ध नहीं बना सकते। ३. स्निग्ध या रूक्षता दो अंश (unit) या तीन अंश आदि अधिक हों तो सदृश परमाणु मिलकर स्कन्ध का निर्माण कर सकते हैं। बन्ध-काल में अधिक अंश वाले परमाणु हीन अंश वाले परमाणुओं को अपने रूप में परिणत कर लेते हैं। पाँच अंश वाले स्निग्ध परमाणु के योग से तीन अंश वाला स्निग्ध परमाणु पाँच अंश वाला हो जाता है। इसी प्रकार पाँच अंश वाले स्निग्ध परमाणु के योग से तीन अंश वाला रूखा परमाणु स्निग्ध हो जाता है। जिस प्रकार स्निग्धत्व हीनांश रूक्षत्व को अपने में मिला लेता है उसी प्रकार रूक्षत्व भी हीनांश स्निग्ध को अपने में मिला लेता है। कभी-कभी परिस्थितिवश स्निग्ध परमाणु समांश-रूक्ष परमाणुओं को और रूक्ष परमाणु समांश-स्निग्ध परमाणुओं को भी अपने-अपने रूप में परिणत कर लेता है। सूक्ष्मता और स्थूलता __ परमाणु सूक्ष्मतम है और अचित्त-महास्कन्ध स्थूलतम है। इनके मध्यवर्ती सौम्य स्थौल्य आपेक्षिक है—एक स्थूल वस्तु की अपेक्षा किसी दूसरी वस्तु को सूक्ष्म और एक सूक्ष्म वस्तु की अपेक्षा किसी दूसरी वस्तु को स्थूल कहा जाता दिगम्बर आचार्य स्थूलता और सूक्ष्मता के आधार पर पुद्गल को छह भागों में विभक्त करते हैं १. बादर-बादर-पत्थर आदि ठोस पदार्थ (solid) जो विभक्त होकर स्वयं जुड़ नहीं सकते। २. बादर-प्रवाही पदार्थ . (iquid) जो विभक्त होकर स्वयं मिल जाएँ। ३. बादर-सूक्ष्म-वायु (gas) जो स्थूल भासित होने पर भी सूक्ष्म हैं, आंखों से देखे नहीं जा सकते (चाक्षुष नहीं है)। ४. सूक्ष्म-बादर-प्रकाश आदि सूक्ष्म होने पर भी इन्द्रिय-गम्य हैं। ५... सूक्ष्म-मनोवर्गणा. भाषावर्गणा आदि पुद्गल, जो इन्द्रियातीत हैं। ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म-कार्मण वर्गणा आदि अत्यन्त /सूक्ष्म स्कन्ध । .. छाया यह अ-पारदर्शक और पारदर्शक-दोनों प्रकार की होती है।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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