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अब निहारें परमाणु-जगत् का ताण्डव-नृत्य इसलिए व्यवहारतः उसे परमाणु कहा गया है। विज्ञान के परमाणु की तुलना इस व्यावहारिक परमाणु से होती है इसलिए परमाणु के टूटने की बात एक सीमा तक जैन-दृष्टि को भी स्वीकार्य है। पुद्गल के गुण
पुद्गल के मूल गुण बीस हैं : स्पर्श-शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध, लघु, गुरु, मृदु और कर्कश । रस-अम्ल, मधुर, कटु, कषाय और तिक्त । गन्ध-सुगन्ध और दुर्गन्ध । वर्ण-कृष्ण, नील, रवत, पीत और श्वेत।
उपर्युक्त आठ स्पर्शों में पहले चार स्पर्श मूलभूत हैं और शेष चार स्पर्श संयोगज हैं। इनकी तुलना विज्ञान में प्रचलित जड़ पदार्थ के गुणधर्मों के साथ इस प्रकार की जा सकती है
शीत, उष्ण तापमान (temperature) रूक्ष, स्निग्ध-धन (+) और ऋण (-) विद्युत लघु, गुरु–संहति (mass) मृदु, कर्कश-सतही कठोरता (hardness)
यद्यपि परिमण्डल, वृत्त, त्रयस्र, चतुरस्रत आदि संस्थान (आकार) पुद्गल में ही होता है, फिर भी वह उसका गुण नहीं है।
सूक्ष्म परमाणु द्रव्य-रूप में निरवयव और अविभाज्य होते हुए भी पर्याय दृष्टि से वैसा नहीं है। उसमें वर्ण, गंध और रस और स्पर्श-ये चार गुण और अनन्त पर्याय होते हैं। एक परमाणु में एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श (शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष इन युगलों में से एक-एक) होते हैं। पर्याय की दृष्टि से एक गुण (unit) काला परमाणु अनन्त गुण काला जो जाता है और अनन्त काला परमाणु एक गुण काला। एक परमाणु में वर्ण से वर्णान्तर, गंध से गंधान्तर, रस से रसान्तर और स्पर्श से स्पर्शान्तर होना जैन दृष्टि सम्मत है।
एक गुण काला पुद्गल यदि उसी रूप में रहे तो जघन्यत: (कम से कम) एक समय और उत्कृष्टत: (अधिक से अधिक) असंख्यात काल तक रह सकता है । द्विगुण से लेकर अनन्त गुण तक के परमाणु-पुद्गलों के लिए यही नियम है । बाद में उनमें परिवर्तन अवश्य होता है। यह वर्ण-विषयक नियम गंध, रस और स्पर्श पर भी लागू होता है।