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अब निहारें परमाणु-जगत् का ताण्डव-नृत्य
पुद्गल
विज्ञान जिसको भौतिक अस्तित्व (Physical Order of Existence) और न्याय-वैशेषिक आदि जिसे भौतिक तत्त्व कहते हैं, उसे जैन-दर्शन में पुद्गल संज्ञा दी गयी है। बौद्ध-दर्शन में पुद्गल शब्द आलय-विज्ञान-चेतना-संतति के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जैन-शास्त्रों में भी अभेदोचार से पुद्गलयुक्त आत्मा को पुद्गल कहा है। किन्तु मुख्यतया पुद्गल का अर्थ है-मूर्त द्रव्य। छह द्रव्यों में काल को छोड़कर शेष पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं, अवयवी हैं, फिर भी इन सबकी स्थिति एक-सी नहीं। पुद्गल अखण्ड द्रव्य नहीं है। उसका सबसे छोटा रूप एक परमाणु है और सबसे बड़ा रूप विश्वव्यापी अचित्त महास्वंध इसीलिए उसको पूरण-गलन-धर्म कहा है। स्निग्ध या रूक्ष कणों की संख्या वृद्धि का नाम 'पूरण' और उनकी संख्या-हानि का नाम ‘गलन' है। शब्द, सूक्ष्म-स्थूल, हल्का-भारी, लम्बा-चौड़ा, बन्ध-भेद, आकार, प्रकाश-अन्धकार, ताप-छाया आदि पौद्गलिक पदार्थों के विषय में जो विस्तृत विवेचन जैन दर्शन में प्रस्तुत हुआ है, वह जैन तत्त्वज्ञान की सूक्ष्म-दृष्टि और वैज्ञानिकता का परिचायक है।
तत्त्व-संख्या में परमाणु की स्वतन्त्र गणना नहीं है। वह पुद्गल का ही एक विभाग है। पुद्गल के दो प्रकार बतलाएँ हैं :
१. परमाणु-पुद्गल २. नो-परमाणु-पुद्गल-द्विप्रदेशी (द्वयणुक) आदि स्कन्ध ।
पुद्गल के विषय में जैन-तत्त्ववेत्ताओं ने जो विवेचना और विश्लेषणा दी है, उसमें उनकी मौलिकता सहज सिद्ध है।
यद्यपि कुछेक पश्चिमी विद्वानों का ख्याल है कि भारत में परमाणुवाद यूनान से आया, किन्तु यह सही नहीं है। यूनान में परमाणुवाद का जन्मदाता डिमोक्रिट्स हुआ है। उसके परमाणुवाद से जैनों का परमाणुवाद बहुतांश में भिन्न है. मौलिकता की दृष्टि से सर्वथा भिन्न है। जैन-दृष्टि के अनुसार परमाणु चेतना