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जन दर्शन और संस्कृति असंख्यात वर्ष
= एक पल्योपम १० क्रोडाक्रोड़ (क्रोडxक्रोड़) पल्योपम = एक सागरोपम २० क्रोड़ाक्रोड़ सागरोपम
= एक काल-चक्र अनन्त काल-चक्र
= एक पुद्गल परावर्त इन सारे विभागों को संक्षेप में अतीत, प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) और अनागत कहा जाता है। अभ्यास
१. द्रव्य किसे कहते हैं? २. “अस्तिकाय की अवधारणा जैन दर्शन की एक मौलिक देन है” इसे
सिद्ध करें। ३. धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय को मानने के लिए क्या युक्तियाँ दी
जा सकती हैं? ४. लोकाकाश किसे कहते हैं? ५. जैन दर्शन में आकाश और काल के स्वरूप को स्पष्ट करें।
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पल्योपम-संख्या से ऊपर का काल-असंख्यात काल, उपमा काल-एक चार कोश का लम्बा-चौड़ा और गहरा कुआं है, उसमें नवजात यौगलिक शिशु के केशों को, जो मनुष्य के केश के २४०१ हिस्से जितने सूक्ष्म हैं, असंख्य खण्ड कर ठसाढ़स भरा जाए, प्रति सौ वर्ष के अन्तर से एक-एक केश-खण्ड निकालते-निकालते जितने काल में वह कुआं खाली हो, उतने काल को एक पल्योपम कहते हैं।