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आओ चलें अमूर्त्त विश्व की यात्रा पर
अस्तिकाय और काल
धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और जीव—ये पांच अस्तिकाय हैं । ये तिर्यक : 5- प्रचय- स्कन्ध के रूप में हैं, इसलिए उन्हें अस्तिकाय कहा जाता है । धर्म, अधर्म, आकाश और एक जीव एक स्कंध हैं । इनके देश या प्रदेश ये विभाग काल्पनिक हैं। मूलतः वे अविभागी हैं । पुद्गल विभागी है। उसके स्कंध और परमाणु - ये दो मुख्य विभाग हैं । परमाणु उसका अविभाज्य भाग है । दो परमाणु मिलते हैं— द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है । जितने परमाणु मिलते हैं, उतने प्रदेशों का स्कन्ध बन जाता है। प्रदेश का अर्थ है— पदार्थ के परमाणु जितना अवयव या भाग। धर्म, अधर्म, आकाश और जीव के स्कंधों के परमाणु जितने विभाग किए जाएँ तो आकाश के अनन्त और शेष तीनों के असंख्यात होतें हैं, इसलिए आकाश को अनन्त - प्रदेशी और शेष तीनों को असंख्य-प्रदेशी कहा गया है। 'देश' बुद्धि-कल्पित होता है, उसका कोई निश्चित परिमाण नहीं बताया जा
सकता ।
अस्तिकाय के स्कन्ध, देश और प्रदेश इस प्रकार है :
देश
अनियत
अनियत
अनियत
अस्तिकाय
धर्म
अधर्म
आकाश
पुद्गल
(स्कन्ध)
स्कन्ध
एक
एक
एक
अनन्त
(द्विप्रदेशी यावत् अनन्त- प्रदेशी)
एक
अनियत
३५
प्रदेश
असंख्यात
असंख्यात
अनन्त
दो यावत्
अनन्त परमाणु
असंख्यात
एक जीव
अनियत
काल के अतीत समय नष्ट हो जाते हैं । अनागत समय अनुत्पन्न होते हैं । इसलिए उसका स्कन्ध नहीं बनता । वर्तमान समय एक होता है, इसलिए उसका तिर्यक्- प्रचय (तिरछा फैलाव ) नहीं होता । काल का स्कंध या तिर्यक्प्रचय नहीं होता, इसलिए वह अस्तिकाय नहीं है ।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार कालाणुओं की संख्या लोकाकाश के तुल्य है । आकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु अवस्थित है । काल शक्ति और व्यक्ति की अपेक्षा एक प्रदेश वाला है इसलिए इसके तिर्यक्प्रचय नहीं होता । धर्म आदि पाँचों द्रव्य के तिर्यक्प्रचय क्षेत्र की अपेक्षा से होता हैं, इसलिए वे