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आओ चलें अमूर्न विश्व की यात्रा पर सना भी है और परिवर्तन भी-द्रव्य उत्पन्न भी होता है और नष्ट भी। इस परिवर्तन में भी उसका अस्तित्व नहीं मिटता। उत्पाद और विनाश के बीच यदि कोई स्थिर आधार न हो तो हमें सजाती यता—'यह वही हैं' का अनुभव नहीं हो. सकता। यदि द्रव्य निर्विकार ही हो, तो विश्व की विविधता संगत नहीं हो सकती इसलिए परिणामी नित्यत्ववाद' जैन दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है।
इसी तुलना रासायनिक विज्ञान के 'द्रव्याक्षरत्ववाद' से की जा सकती है। द्रव्याक्षरत्ववाद की स्थापना सन् १७८९ में लेवायजर नामक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने की थी। संक्षेप में इस सिद्धान्त का आशय यह है, कि इस अनंत विश्व में द्रव्य का परिमाण सदा समान रहता है, उसमें कोई न्यूनाधिकता नहीं होती। न किसी वर्तमान द्रव्य का सर्वथा नाश होता है और न किसी सर्वथा नये द्रव्य की उत्पत्ति होती है। साधारण दृष्टि से जिसे द्रव्य का नाश हो ना समझा जाता है, वह उसका रूपान्तरण मात्र है। उदाहरण के लिए कोयला जलकर राख हो जाता है, उसे साधारणत: नष्ट हो गया कहा जाता है परन्तु वस्तुत: वह नष्ट नहीं होता, वायुमण्डल के ऑक्सीजन । अंश के साथ मिलकर कार्बोनिक एसिड गैस के रूप में में परिवर्तित होता है। यूं ही शक्कर या नमक पानी में घुलकर नष्ट नहीं होते, किन्तु ठोस से वे सिर्फ द्रव रूप में परिणत होते हैं। इसी प्रकार जहाँ कहीं कोई नवीन वस्तु उत्पन्न होती प्रतीत होती है, वह भी वस्तुत: किसी पूर्ववर्ती वस्तु का रूपान्तरण-मात्र है। घर में अव्यवस्थित रूप से पड़ी रहने वाली कड़ाही में जंग लग जाता है, यह क्या है? यहाँ भी जंग नामक कोई नया द्रव्य उत्पन्न नहीं हुआ, अपितु धातु की ऊपरी सतह जल और वायुमण्डल के ऑक्सीजन के संयोग से लोहे के ऑक्सी-हाइड्रेट के रूप में परिणत हो गयी।
भौतिक विज्ञान में जब तक जड़ पदार्थ और ऊर्जा को नितान्त भिन्न समझा जाता था, तब तक दो अलग-अलग ‘संरक्षण-नियम' (conservation lavs) थे—'पदार्थ या संहति (mass) के संरक्षण का नियम' और 'ऊर्जा के संरक्षण का नियम (ये क्रमश. principle of Conservation of Alass और principle of Conservation of Energy कहलाते है)। आइन्स्टीन के द्वारा प्रतिपादित संहनि-ऊर्जा-समानता के सिद्धान्त के पश्चात् अब दोनों का एकीकरण होकर संयुक्त नियम बन गया जिसे 'संहति और ऊर्जा के संरक्षण-नियम' की संज्ञा दी गई हैं। इसके अनुसार विश्व में स्थित संहति-ऊर्जा की कुल राशि सदा अचल रहती है। प्रकाश, ऊष्मा, चुम्बकीय ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा, ध्वनि-ऊर्जा आदि ऊर्जा के विभिन्न रूप माने जाते हैं। ये एक-दूसरे में परिवर्तित होते हैं। इतना ही नहीं. ऊर्जा का परिवर्तन पदार्थ में और पदार्थ का परिवर्तन ऊर्जा में हो सकता है. जिसे आइन्स्टीन के प्रसिद्ध एकीकरण E=mc