________________
आओ चलें अमूर्त विश्व की यात्रा पर
प्रत्येक क्रिया के पीछे कर्ता का कर्तृत्व होता है। यह तर्कशास्त्र का सामान्य नियम है कि कर्ता के बिना क्रिया नहीं हो सकती। व्याकरण-शास्त्र के अनुसार सब कारकों में पहला कारक कर्ता होता है। कर्म, साधन आदि के कारक उसके होने पर ही होते हैं, उसके अभाव में नहीं होते। व्याकरणाचार्यों ने इसी प्रधानता के आधार पर इस सिद्धान्त की स्थापना की—कर्ता स्वतंत्र होता है और कर्म आदि कारक उसके अधीन होते हैं।
___ कर्ता, क्रिया और उसका परिणाम यह एक घटनाक्रम है। कुछ घटनाओं में ये तीनों हमारे सामने होते हैं इसलिए वहाँ कर्तृत्व का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। वे घटनाएँ हमारे सामने कर्तृत्व का प्रश्न उपस्थित करती हैं, जहाँ परिणाम हमारे सामने होता है, किन्तु उसका कर्ता हमारे सामने नहीं होता। इसका उदाहरण हमारा विश्व है जिसमें हम रहते हैं और जिसे निरन्तर अपनी आँखों से तैरता-डूबता देखते हैं। यह विशाल भू-खंड किसके कुशल और सशक्त हाथों की कृति है? ये उत्तुंग शिखर वाले पर्वत किसके हाथों द्वारा निष्पन्न हुए हैं? यह आकाश किसके कौशल का परिचय दे रहा है? ये असंख्य नीहारिकाएँ किसके कर्तृत्व का गीत गा रही हैं? यह चमकते हुए सूर्य और शांति बरसाते हुए चांद का आदि कर्ता कौन है? ये भूखण्ड को आवेष्टित किए हुए समुद्र किसकी सृष्टि हैं? प्रकृति के कण-कण का भाग्यविधाता एवं इस मनुष्य का भाग्यविधाता कौन है? ये प्रश्न शाश्वत प्रश्न हैं। ये आदिकाल से ही मनुष्य के मन में कौतूहल । उत्पन्न किए हुए हैं। उन्हीं का समाधान पाने के लिए मनुष्य ने दर्शन की रेखाएँ खींची हैं।
क्या हमने इन प्रश्नों का समाधान पा लिया? क्या हमारे दर्शन इन प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम हैं? इस प्रश्न का उत्तर हाँ में नहीं मिल रहा है। इस विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि हमने आलोच्य प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयल किया है। हमारे दर्शन इस दिशा में आगे बढ़े हैं किन्तु वह समाधान अन्तिम है, वह समाधान सार्वजनीन (universal) है यह कहना कठिन है।