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________________ अचरम अचित्त महास्कन्ध परिशिष्ट . पारिभाषिक शब्द-कोष देखें 'चरम'। केवलज्ञानी (सर्वज्ञ) जीव द्वारा विशेष परिस्थिति में एक स्वाभाविक क्रिया की जाती है जिसे 'केवली समुद्घात' कहते हैं, इस दौरान उनके आत्म-प्रदेश समूचे लोक में व्याप्त होते हैं। उस समय आत्मा से छूटे हुए पुद्गलों का जो एक स्कन्ध समूचे लोक में व्याप्त हो जाता है, वह अचित्त महास्कन्ध कहलाता अधर्म-द्रव्य (अधर्मास्तिकाय) अध्यवसाय अनन्तकाय अनुमान (प्रमाण) धर्मास्तिकाय की तरह स्थिति (अगति) का लोक व्यापी अनिवार्य माध्यम। छह मूलभूत द्रव्यों में एक है। देखें, धर्म-द्रव्य । आत्मा के वे ‘परिणाम' जो सूक्ष्म स्तर पर चेतना और कर्म के संयुक्त प्रभाव को प्रकट करते हैं। अध्यवसाय 'चित्त' के पूर्व का स्तर है। ... एक शरीर में अनन्त जीव रहते हैं, उन्हें अनन्त-काय कहते हैं। जमीकंद (प्याज, लहसुन आदि), पफूंदी, काई, शेवाल आदि अनन्तकाय हैं। साधन (हेतु) से साध्य का जो ज्ञान होता है, उसे अनुमान कहा जाता है। अनुमान तर्क वा कार्य है। अप्रामाणिक नए-नए धर्मों की ऐसी कल्पनाएं करना जिनका कहीं अन्त न आए। जैसे-जीव की गति के लिए गतिमान् वायु की. उसकी गति के लिए किसी दूसरे गतिमान् पदार्थ की. उसके लिए फिर तीसरे गतिमान् पदार्थ की कल्पना करना। इस प्रकार चलते चलें, आखिर हाथ कुछ न लगे-निर्णय कुछ भी न . हो, वह अनवस्था है। २ समय से लेकर 6 मिनट में एक समय कम तक का सारा काल-मान अन्तरमहर्त कहलाता है। जिसके होने पर अन्य का होना होता है, उनका सम्बन्ध अन्वयी-सम्बन्ध कहलाता है। जिसके न होने अनवस्था दोष अन्तर मुहूर्त अन्वय सम्बन्ध
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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