SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का प्रसार २. कर्नाटक में ह्रास २४३ के कारण १. राष्ट्रकूट और गंगवंशीय राजाओं का अन्त । २. वीर शैवमत के उदयकाल में जैन आचार्यों की उपेक्षा और उनके प्रभाव को रोक पाने की अक्षमता । ३. बसवेश्वर द्वारा प्ररूपित 'लिंगायत' धर्म के बढ़ते चरण को रोक न पाना । ४. अनेक राजाओं का शैव मत में दीक्षित हो जाना । विकास और ह्रास कालचक्र के अनिवार्य नियम हैं । इस विषय में कोई भी वस्तु केवल विकास या ह्रास की रेखा पर अवस्थित नहीं रहती । आरोह के बाद अवरोह और अवरोह के बाद आरोह चलता रहता है। जैन धर्म के अनुयायी- समाज की संख्या में ह्रास हुआ है । किन्तु भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित शाश्वत सत्यों का ह्रास नहीं हुआ है । उनके सापेक्षता, सह-अस्तित्व, अहिंसा, मानवीय एकता, निःशस्त्रीकरण, स्वतंत्रता और अपरिग्रह के सिद्धान्त विश्वमानस में निरन्तर विकसित होते जा रहे हैं । अभ्यास १. जैन धर्म का प्रसार देश-विदेशों में कहां-कहां हुआ तथा उसमें किन-किन व्यक्तियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा ? २. निम्नलिखित स्थलों का जैन तीर्थ क्षेत्र की दृष्टि से परिचय दें : आबू, राणकपुर, श्रवणबेलगोला, राजगृह । ३. जैन धर्म के विकास और ह्रास के मुख्य कारणों को विस्तार से समझाएं । 000
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy