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________________ २३५ जैन धर्म का प्रसार जैनों का प्रमुख विहार-क्षेत्र बन गया था। जैन-आगमों की भाषा महाराष्ट्री-प्राकृत से बहुत प्रभावित है। कुछ विद्वानों ने प्राकृत-भाषा के रूप का 'जैन-महाराष्ट्री-प्राकृत' ऐसा नाम रखा है। ईसा की आठवीं-नौवीं शताब्दी में विदर्भ पर चालुक्य राजाओं का शासन था। दसवीं शताब्दी में वहाँ राष्ट्रकूट राजाओं का शासन था। ये दोनों राजवंश जैन-धर्म के पोषक थे। उनके शासन-काल में वहाँ जैन-धर्म खूब फला-फूला। नर्मदा तट नर्मदा-तट पर जैन-धर्म के अस्तित्व के उल्लेख पुराणों में मिलते हैं। वैदिक आर्यों से पराजित होकर जैन-धर्म के उपासक लोग नर्मदा के तट पर रहने लगे। कुछ काल बाद वे उत्तर भारत में फैल गए थे। हैहय-वंश की उत्पत्ति नर्मदा-तट पर स्थित माहिष्मती के राजा कार्तवीर्य से मानी जाती है। भगवान् महावीर का श्रमणोपासक चेटक हैहय-वंश का ही था। दक्षिण भारत दक्षिण भारत में जैन-धर्म का प्रभाव भगवान् पार्श्व और महावीर से पहले ही हो चुका था। जिस समय द्वारका का दहन हुआ था, उस समय भगवान् अरिष्टनेमि पल्हव देश में थे। वह दक्षिणापथ का ही एक राज्य था। उत्तर-भारत में जब दुर्भिक्ष हुआ, भद्रबाहु दक्षिण में गए। यह कोई आकस्मिक संयोग नहीं, किन्तु दक्षिण भारत में जैन-धर्म के सम्पर्क का सूचक है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि ईसा की पहली शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में जैन-धर्म सबसे अधिक शक्तिशाली धर्म था। पांड्य, गंग, राष्ट्रकूट, कलचूरी और होयसल वंश के अनेक राजा जैन थे। पश्चिमी चालुवय वंश के शासक जैन-धर्म के संरक्षक के रूप में विख्यात थे। राष्ट्रकूट वंश के राजा भी जैन-धर्म को पल्लवित करने तथा उसको संरक्षण देने में अग्रणी रहे हैं। तमिल देश के चोलवंशीय शासक यद्यपि जैन नहीं थे, फिर भी उन्होंने जैन-धर्म को पर्याप्त सहयोग देकर उसका संरक्षण किया। कलचूरि वंश के संस्थापक त्रिभुवनमल्ल विज्जल (११५६-११६७) के सभी दान-पात्रों में जैन-तीर्थकर का चित्र अंकित मिलता है। वह स्वयं जैन था। मैसूर के होयसल वंश के राजा जैन थे। विजयनगर के राजाओं की जैन-धर्म के प्रति सहिष्णुता रही है। उन्होंने अनेक स्थानों पर..जैन मन्दिर बनवाए, मूर्तियाँ स्थापित की और जैन मुनियों को संरक्षण दिया।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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