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________________ २३४ जैन दर्शन और संस्कृति राष्ट्रकूट-नरेश जैन-धर्म के अनुयायी थे। उनका कलचूरि-नरेशों से गहरा सम्बन्ध था। कलचूरि की राजधानी त्रिपुरा और रत्नपुर में आज भी अनेक प्राचीन जैन-मूर्तियाँ और खण्डहर प्राप्त हैं। चन्देल राज्य के प्रधान नगर खजुराहो में मिले लेख तथा प्रतिमाओं के अध्ययन से जैन-मत के प्रचार का ज्ञान होता है। प्रतिमाओं के पादासनों पर खुदे लेख यह प्रमाणित करते हैं कि राजाओं के अतिरिक्त साधारण जनता भी जैन-मत में विश्वास रखती थी। मालवा अनेक शताब्दियों तक जैन-धर्म का प्रमुख-क्षेत्र था। व्यवहार-भाष्य में बताया गया है कि अन्यतीर्थिकों के साथ वाद-विवाद मालव आदि क्षेत्रों में करना चाहिए। इससे जाना जाता है कि अवन्तीपति चण्डप्रद्योत तथा विशेषत: सम्राट् सम्प्रति से लेकर भाष्य-रचनाकाल तक वहाँ जैन-धर्म प्रभावशाली रहा है। सौराष्ट्र-गुजरात सौराष्ट्र जैन-धर्म का प्रमुख केन्द्र था। भगवान् अरिष्टनेमि से वहाँ जैन परम्परा चल रही थी। सम्राट् सम्प्रति के राज्यकाल में वहाँ जैन-धर्म को अधिक बल मिला था। सूत्रकृतांग चूर्णि में सौराष्ट्र-वासी श्रावक का उल्लेख मगधवासी श्रावक की तुलना में किया गया है। जैन-साहित्य में 'सौराष्ट्र' का प्राचीन नाम 'सुराष्ट्र' मिलता है। विक्रम की दूसरी शताब्दी में दिगम्बर आचार्य धरसेन सौराष्ट्र के गिरिनगर की चन्द्रगुफा में निवास करते थे। उन्होंने षट्खण्डागम के रचयिता भूतबलि और पुष्पदन्त को श्रुताभ्यास करवाया। सौराष्ट्र के दूसरे नगर वल्लभी में भी श्वेताम्बर-जैनों की दो आगम-वाचनाएं हुई थीं। ईसा की चौथी शताब्दी में जब आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में मथुरा में आगम-वाचना हो रही थी, उस समय आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व में वह वल्लभी में हो रही थी। ईसा की पाँचवीं शताब्दी में फिर वहीं आगम-वाचना के लिए एक परिषद् आयोजित हुई। उसका नेतृत्व देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण ने किया। गुजरात के चालुक्य, राष्ट्रकूट, चावडा, सोलंकी आदि राजवंशी भी जैन-धर्म के अनुयायी या समर्थक थे। बम्बई-महाराष्ट्र सम्राट सम्प्रति से पूर्व जैनों की दृष्टि में महाराष्ट्र अनार्य-देश की गणना में था। उसके राज्यकाल में जैन साधु वहाँ विहार करने लगे। उत्तरवर्ती-काल में वह
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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