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________________ २३६ जैन दर्शन और संस्कृति १२वीं शती के अन्त से १८वीं के अन्त तक मुसलमानों के आक्रमण के कारण सभी धर्म-परंपराओं को प्रहार सहने पड़े। जैन-धर्म भी उससे अछूता नहीं रहा। फिर भी उत्तर भारत और दक्षिण भारत के अनेक अंचलों में जैन-धर्म के शासक, जैन-धर्म के संरक्षक या जैन-धर्म के पोषक राजा राज्य करते रहे और यह धर्म जनमानस को अहिंसा, सत्य आदि शाश्वत तत्त्वों की ओर आकृष्ट करता रहा। विदेशों में जैन-धर्म जैन-साहित्य के अनुसार भगवान् ऋषभ, पार्श्व और महावीर ने अनार्य देशों में विहार किया था। सूत्रकृतांग के एक श्लोक से अनार्य का अर्थ 'भाषा-भेद' भी फलित होता है। इस अर्थ की छाया में हम कह सकते हैं कि चार तीर्थंकरों ने उन देशों में भी विहार किया, जिनकी भाषा उनके मुख्य विहार-क्षेत्र की भाषा से भिन्न थी। भगवान् ऋषभ ने बहली (बैक्ट्रिया, बलख), अंडबइल्ला (अटक प्रदेश), यवन (यूनान), सुवर्णभूमि (सुमात्रा), पण्हव आदि देशों में विहार किया। पण्हव का सम्बन्ध प्राचीन पार्थिया (वर्तमान ईरान का एक भाग) से है। भगवान् अरिष्टनेमि दक्षिणापथ के मलय देश में गए थे। जब द्वारका-दहन हुआ था, तब अरिष्टनेमि पल्हव नामक अनार्य देश में थे। भगवान् पार्श्वनाथ ने कुरु, कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्ड्र, मालव, अंग, बंग, कलिंग, पांचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्णाटक, कोंकण, लाट, द्राविड़, काश्मीर, कच्छ, शाक, पल्लव, वत्स, आभीर आदि देशों में विहार किया था। दक्षिण में कर्णाटक, कोंकण, पल्लव, द्राविड़ आदि उस समय अनार्य माने जाते थे। शाक भी अनार्य प्रदेश है। इसकी पहिचान शाक्यदेश या शाक्य-द्वीप से हो सकती है। शाक्य भूमि नेपाल की उपत्यका में है। वहाँ भगवान् पार्श्व के अनुयायी थे। भगवान् बुद्ध का चाचा स्वयं भगवान् पार्श्व का श्रावक था। शाक्य-प्रदेश में भगवान् का विहार हुआ हो, यह बहुत सम्भव है। भारत और . शाक्य-प्रदेश का बहुत प्राचीन काल से सम्बन्ध रहा है। भगवान् महावीर पूर्व में बंगाल की ओर वज्रभूमि, सुम्हभूमि, दृढ़भूमि आदि अनेक अनार्य-प्रदेशों में गए थे। उत्तर-पश्चिम सीमाप्रांत एवं अफगानिस्तान में विपुल संख्या में जैन श्रमण विहार करते थे। जैन श्रावक समुद्र पार जाते थे। उनकी समुद्र-यात्रा और विदेश-व्यापार के अनेक प्रमाण मिलते हैं। लंका में जैन श्रावक थे, इसका उल्लेख सिंहली साहित्य
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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