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________________ जैन साहित्य : संक्षिप्त परिचय २१३ वाले देवर्द्धिगणी हैं। इसलिए वे आगमों के वर्तमान-रूप के कर्ता भी माने जाते हैं। आगम का व्याख्यात्मक साहित्य आगम के व्याख्यात्मक साहित्य का प्रारम्भ नियुक्ति से होता है और वह 'स्तबक' और 'जोड़ों' तक चलता है। नियुक्तियाँ और नियुक्तिकार-द्वितीय भद्रबाहु ने दस नियुक्तियाँ लिखीं। इनका रचनाकाल वीर-निर्वाण की पांचवीं-छठी शताब्दी है। इनकी भाषा प्राकृत है। इनमें संक्षिप्त शैली के आधार पर अनेक विषय और पारिभाषिक शब्द प्रतिपादित हैं। ये भाष्य और चूर्णियों के लिए आधारभूत हैं। ये पद्यबद्ध व्याख्याएं हैं। भाष्य और भाष्यकार-आगमों और नियुक्तियों के आशय को 'स्पष्ट करने के लिए भाष्य लिखे गए। अब तक दस भाष्य उपलब्ध हैं। चूर्णियां और चूर्णिकार-चूर्णियां गद्यात्मक हैं। इनकी भाषा प्राकृत या । संस्कृत-मिश्रित प्राकृत है। आगम ग्रन्थों पर १५ चूर्णियां मिलती हैं। टीकाएं और टीकाकार-आगमों के संस्कृत-टीकाकारों ने अनेक आगमों पर टीकाएं लिखीं। आगम-साहित्य की समृद्धि के साथ-साथ न्यायशास्त्र के साहित्य का भी विकास हुआ। वैदिक और बौद्ध न्यायशास्त्रियों ने अपने-अपने तत्त्वों को तर्क की कसौटी पर कसकर जनता के सम्मुख रखने का यत्ल किया, तब जैन न्यायशास्त्री भी इस ओर मुड़े। विक्रम की पांचवीं शताब्दी में न्याय का जो नया स्रोत बहा, वह बारहवीं में बहुत व्यापक हो गया। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में न्यायशास्त्रियों की गति कुछ शिथिल हो गई। आगम के व्याख्याकारों की परम्परा आगे भी चली। गुजरातीराजस्थानी-मिश्रित भाषा में आगमों पर स्तबक लिखे गए। आगम के सैकड़ों दुरूह स्थलों पर कुछ प्रकीर्ण व्यख्याएं लिखी गईं और कुछ आगमों पर पद्यात्मक व्याख्या रची गई। - इस प्रकार जैन-साहित्य आगम, आगम-व्याख्या-साहित्य और न्याय साहित्य से बहुत समृद्ध है। . परवर्ती प्राकृत साहित्य विक्रम की दूसरी शती में आचार्य कुन्दकुन्द हुए। उन्होंने अध्यात्मवाद का एक नया स्रोत प्रवाहित किया। उनका झुकाव निश्चय-नय की ओर अधिक था।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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