SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ जैन दर्शन और संस्कृति है। कवि समयसुन्दरजी की रचनाओं का संग्रह अगरचन्दजी नाहटा ने अभी प्रकाशित किया है। पुटकर 'ढालों' का संकलन किया जाए, तो इतिहास को नई दिशाएं मिल सकती हैं। राजस्थानी भाषाओं का प्राकृत और अपभ्रंश है। काल-परिवर्तन के साथ-साथ दूसरी भाषाओं का सम्मिश्रण हुआ है। राजस्थानी साहित्य में जैन-शैली के लेखक जैन-साधु और यति अथवा उनसे सम्बन्ध रखने वाले लोग हैं। इनमें प्राचीनता की झलक मिलती है। अनेक प्राचीन शब्द और मुहावरे इसमें आगे तक चले आये हैं। जैनों का संबंध गुजरात के साथ विशेष रहा है। अत: राजस्थानी जैन-शैली में गुजरात का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। तेरापंथ के आचार्य भिक्षु ने राजस्थानी साहित्य में एक नया स्रोत बहाया। अध्यात्म, अनुशासन, ब्रह्मचर्य, धार्मिक-समीक्षा, रूपक, लोक कथा और अपनी अनुभूतियों से उसे व्यापकता की ओर ले चले। उन्होंने गद्य भी बहुत लिखा। उनकी सारी रचनाओं का परिमाण ३८,००० श्लोक के लगभग है। मारवाड़ी के ठेठ शब्दों में लिखना और उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करना उनकी अपनी विशेषता है। उनकी वाणी का स्रोत क्रांति और शान्ति–दोनों धाराओं में बहा नव पदार्थ, विनीत-अविनीत, व्रताव्रत, अनुकंपा, शील की नववाड़ आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य राजस्थानी भाषा के महाकवि थे। उन्होंने अपने जीवन में लगभग साढ़े तीन लाख श्लोक-प्रमाण गद्य-पद्य लिखे। उनकी कृतियों में भगवती की जोड़, उत्तराध्ययन की जोड़, भिवखु दृष्टान्त, आराधना, चौबीसी आदि उल्लेखनीय हैं। एक ही कृति भगवती की जोड़, जो भगवती सूत्र का पद्यानुवाद है, ६०,००० श्लोक-प्रमाण है। यह राजस्थानी भाषा का विशालतम ग्रंथ है। __उनकी लेखनी में प्रतिभा का चमत्कार था। वे साहित्य और अध्यात्म के क्षेत्र में अनिरुद्ध गति से चले। उनकी सफलता का स्वत: प्रमाण उनकी अमर कृतियाँ हैं। उनका तत्त्व-ज्ञान प्रौढ़ था। श्रद्धा, तर्क और व्युत्पत्ति की त्रिवेणी में आज भी उनका हृदय बोल रहा है। जिन-वाणी पर उनकी अटूट श्रद्धा थी। विचार-भेद की दुनिया के लिए वे तार्किक थे। साहित्य, संगीत, कला, संस्कृति-ये उनके व्युत्पत्ति-क्षेत्र थे। उनका सर्वतोमुखी व्यक्तित्व उनके युग-पुरुष होने की साक्षी भर रहा है। .
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy