SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ जैन दर्शन और संस्कृति आर्य जम्बूकुमार जब जम्बूकुमार सुधर्मा के पास दीक्षित हुए, तब उनकी आयु सोलह वर्ष की थी। अट्ठाईस वर्ष की आयु में वे आचार्य बने और छत्तीस वर्ष की आयु में उन्हें केवलज्ञान की उपलब्धि हुई। इनका पूरा आयुष्य ८० वर्ष का था। चौसठ वर्ष के श्रमण-पर्याय में ये चवालीस वर्ष तक युगप्रधान आचार्य के रूप में रहे। वे इस युग के अन्तिम केवली थे। उनका निर्वाण ईस्वी पूर्व ४५३ में हुआ। __ आचार्य जम्बू के पश्चात् क्रमश: छह आचार्य श्रुतकेवली हुए-प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, संभूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र। संप्रदाय-भेद विचार का इतिहास जितना पुराना है, लगभग उतना ही पुराना विचार-भेद का इतिहास है। दीर्घकालीन परम्परा में विचार-भेद होना अस्वाभाविक नहीं है। जैन परम्परा में भी ऐसा ही हुआ। जैन परम्परा का भेद मूल तत्त्वों की अपेक्षा ऊपरी बातों या गौण प्रश्नों पर अधिक टिका हुआ है। आमूलचूल विचार-परिवर्तन होने पर कुछ जैन साधु निग्रन्थ शासन को छोड़कर अन्य शासन (धर्म-परम्परा) में जाकर वहाँ श्रमण बन गए। गोशालक भी उनमें एक था। ऐसे श्रमणों को निह्नव की संज्ञा नहीं दी गई। निह्नव उन्हीं साधुओं को कहा गया जिनका चालू परम्परा के साथ किसी एक विषय में मतभेद हो जाने के कारण, वे वर्तमान शासन से पृथक् हो गए, किन्तु किसी अन्य धर्म को स्वीकार नहीं किया। इसलिए उन्हें अन्यधर्मी न कहकर, जैन शासक ने निह्नव (किसी एक विषय का अपलाप करने वाले) कहा गया है। इस प्रकार के निह्नव सात हुए हैं। इनमें से दो (जमाली और तिष्यगुप्त) भगवान् महावीर की कैवल्य-प्राप्ति के बाद हुए हैं और शेष पाँच निर्वाण के बाद। इन सब निह्नवों का अस्तित्व-काल भगवान् महावीर को कैवल्य-प्राप्ति के चौदह वर्ष से निर्वाण के बाद ५८४ वर्ष तक रहा।' १. निम्नलिखित कोष्ठक में सातों निह्नवों का विवरण हैआचार्य मत-स्थापना उत्पत्ति-स्थान कालमान १. जमाली बहुरतवाद श्रावस्ती कैवल्य के १४ वर्ष पश्चात् २. तिष्यगुप्त जीवप्रादेशिकवाद ऋषभपुर कैवल्य के १६ वर्ष ” ३. आषाढ़-शिष्य अव्यक्तवाद श्वेतविका निर्वाण के ११४ वर्ष । ४. अश्वमित्र सामुच्छेदिकवाद मिथिला निर्वाण के २२० वर्ष " ५. गंग द्वैक्रियवाद उल्लुकातीर निर्वाण के २२८ वर्ष” ६. रोहसुप्त त्रैराशिकवाद अंतरंजिका निर्वाण के ५५४ वर्ष " ७. गोंष्ठामाहिल अबद्धिकवाद दशपुर निर्वाण के ६०९ वर्ष "
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy