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________________ उत्तरकालीन परम्परा गणधर गौतम जिस समय भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ, उस समय उनके प्रमुख शिष्य प्रथम गणधर गौतम प्रतिबोध देने के लिए दूसरे गाँव गए हुए थे। निर्वाण की सूचना मिलते ही वे शोक से विह्वल हो गए। चिन्तन की धारा मुड़ी और वे वहीं केवली हो गए। उनका मूल नाम इन्द्रभूति था। ये बोब्बर ग्रामवासी गौतम-गोत्रीय ब्राह्मण के पुत्र थे। वे पचास वर्ष की अवस्था में प्रवजित हुए थे। तीस वर्ष तक वे भगवान् महावीर के साथ छद्मस्थ अवस्था में ग्रामानुग्राम विहार करते हुए धर्म का प्रचार करते रहे। जब केवली बने, तब उनकी अवस्था अस्सी वर्ष की थी। वे केवलज्ञानी के रूप में भगवान् महावीर के बाद बारह वर्ष तक, रहे और बानवें वर्ष की आयु समाप्त कर निर्वाण को प्राप्त हो गए। गणधर सुधर्मा दिगम्बर परम्परा का अभिमत है कि भगवान महावीर के प्रथम उत्तराधिकारी गौतम थे। श्वेताम्बर परम्परा का अभिमत है कि केवली कभी किसी परम्परा का वाहक नहीं होता। गौतम केवली हो चुके थे। सुधर्मा के अतिरिक्त शेष नौ गणधर भगवान् की उपस्थिति में ही निर्वाण को प्राप्त हो गए थे। इसलिए संघ के संचालन का भार गणधर सुधर्मा पर आया और वे भगवान् महावीर के प्रथम उत्तराधिकारी हुए। उनका जन्म ईसवी पूर्व ६०७ में कोल्लाग सन्निवेश के अग्निवेश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण धम्मिल के यहाँ हुआ। उनकी माता का नाम भद्दिला था। उनका संपूर्ण आयुष्य सौ वर्ष का था। वे पचास वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए, बयालीस वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में (नीस वर्ष तक भगवान् के पास और बारह वर्ष तक भगवान् के निर्वाण के बाद) और आठ वर्ष तक केवलज्ञानी की अवस्था में रहे। वे वैभारगिरि (राजगृह) पर एक मास का अनशन कर वीर निर्वाण २० (ई. पूर्व ५०७) में निर्वाण को प्राप्त हुए।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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