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________________ जैन दर्शन और संस्कृति कुछ विद्वानों का अभिमत है कि यज्ञ, जातिवाद आदि ब्राह्मण - सिद्धान्तों का विरोध करने के लिए महावीर ने जैन धर्म का प्रवर्तन किया । किन्तु यह सत्य नहीं है। महावीर जिस श्रमण - परम्परा में दीक्षित हुए वह बहुत प्राचीन है । उसका अस्तित्व वेदों की रचना से पूर्ववर्ती है । वेदों में स्थान-स्थान पर श्रमण- परम्परा की विचारधारा का उल्लेख मिलता है । -३ १९० भगवान् महावीर का परिवार तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्व के धर्म का अनुगामी था । इन साक्ष्यों से यह प्रतिध्वनित नहीं होता कि महावीर ने ब्राह्मण सिद्धान्तों का विरोध करने के लिए जैन धर्म का प्रवर्तन किया । अहिंसा और मुक्ति — ये श्रमण-संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं । महावीर ने स्वयं द्वारा व्याख्यात अहिंसा की प्राचीन तीर्थंकरों द्वारा व्याख्यात अहिंसा के साथ एकता प्रतिपादित की है। भगवान् महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं, किन्तु उन्नायक थे । उन्होंने प्राचीन परम्पराओं को आगे बढ़ाया, अपने समसामयिक विचारों की परीक्षा की और उनके आलोक में अपने अभिमत जनता को समझाए । उनके विचारों का आलोचनापूर्वक विवेचन सूत्रकृतांग में मिलता है । w श्रमण परम्परा प्रागवैदिक है और भारतीय जीवन में आदिकाल से परिव्याप्त है । श्रमणों की अनेक धाराएं रही हैं । उनमें सबसे प्राचीन धारा भगवान् ऋषभ की और सबसे अर्वाचीन भगवान् बुद्ध की है और सब मध्यवर्ती हैं । वैदिक और पौराणिक दोनों साहित्य - विधाओं में भगवान् ऋषभ श्रमण धर्म के प्रवर्तक के रूप में उल्लिखित हुए हैं । भगवान् ऋषभ का धर्म विभिन्न युगों में विभिन्न नामों से अभिहित होता रहा । आदि में उसका नाम श्रमण-धर्म था । फिर अर्हत् धर्म हुआ । भगवान् महावीर के युग में उसे निर्ग्रन्थ धर्म कहा जाता था । बौद्ध साहित्य में भगवान् का उल्लेख 'निग्गंथ नातपुत्ते' के नाम से हुआ। उनके निर्वाण की दूसरी शताब्दी में वह 'जैन धर्म' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । भगवान् महावीर के अस्तित्व-काल में श्रमणों के चालीस से अधिक सम्प्रदाय थे। उनमें पाँच बहुत प्रभावशाली थे : १. निर्ग्रथ - महावीर का शासन । २. शाक्य - बुद्ध का शासन । ३. आजीवक मंक्खली गोशालक का शासन । ४. गैरिक—– तापस शासन । ५. परिव्राजक—सांख्य शासन | बौद्ध-साहित्य में छह श्रमण-सम्प्रदायों, उनके आचार्यों तथा सिद्धान्तों का उल्लेख मिलता है जिसमें एक थे— निग्गंथ नातपुत्र ( भगवान् महावीर) ।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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