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________________ १७८ जैन दर्शन और संस्कृति इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि का पारिवारिक सम्बन्ध था। अरिष्टनेमि समुद्रविजय के और 'श्रीकृष्ण वसुदेव के पुत्र थे। समुद्रविजय और वसुदेव सगे भाई थे। श्रीकृष्ण ने अरिष्टनेमि के विवाह के लिए प्रयत्न किया। अरिष्टनेमि की दीक्षा के समय वे उपस्थित थे। राजीमती को भी दीक्षा के समय में उन्होंने भावुक शब्दों में आशीर्वाद दिया। श्री कृष्ण के प्रिय अनुज गजसुकुमार ने अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ती। श्री कृष्ण की आठ पत्नियाँ अरिष्टनेमि के पास प्रव्रजित हुईं। श्री कृष्ण के पुत्र और उनके पारिवारिक लोग अरिष्टनेमि के शिष्य बने। जैन साहित्य में अरिष्टनेमि और श्री कृष्ण के वार्तालापों, प्रश्नोत्तरों और विविध चर्चाओं के अनेक उल्लेख मिलते हैं। वेदों में श्री कृष्ण के देव रूप की चर्चा नहीं है। छान्दोग्य-उपनिषद् में भी श्री कृष्ण के यथार्थ रूप का वर्णन है। पौराणिक काल में श्री कृष्ण का रूप-परिवर्तन होता है। वे सर्वशक्तिमान देव बन जाते हैं। श्री कृष्ण के यथार्थ-रूप का वर्णन जैन आगमों में मिलता है। अरिष्टनेमि और उनकी वाणी से वे प्रभावित थे, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। उस समय सौराष्ट्र की आध्यात्मिक चेतना का आलोक समूचे भारत को आलोकित कर रहा था। तीर्थंकर पार्श्व तेईसवें तीर्थंकर पार्श्व हुए। उनका तीर्थ-प्रवर्तन भगवान् महावीर से २५० वर्ष पहले हुआ। भगवान् महावीर के समय तक उनकी परम्परा अविच्छिन्न थी। भगवान् महावीर के माता-पिता भगवान् पार्श्व के अनुयायी थे। अहिसा और सत्य की साधना को समाजव्यापी बनाने का श्रेय भगवान् पार्श्व को है। भगवान् पार्श्व अहिंसक परम्परा के उन्नयन द्वारा बहुत लोकप्रिय हो गये थे। इसकी जानकारी हमें पुरिसादाणी य' (पुरुषादानीय) विशेषण के द्वारा मिलती है। भगवान् महावीर भगवान् पार्श्व के लिए इस विशेषण का सम्मानपूर्वक प्रयोग करते थे। ये काशी नरेश अश्वसेन के पुत्र थे। इनकी माता का नाम वामादेवी था। ये ३० वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए। वर्षों तक साधना कर केवली बने । तीर्थ की स्थापना कर ऋषभ की श्रृंखला में तेईसवें तीर्थंकर हुए। इनका जन्म ई.पू. ८७७ में हुआ। इन्होंने सौ वर्षों की आयु व्यतीत कर ई.पू. ७७७ में सम्मेदशिखर (पारसनाथ पहाड़ी) पर परि-निर्वाण को प्राप्त किया।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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