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________________ भगवान् ऋषभ से पार्श्व तक १७९ इनके १७८ वर्ष पश्चात् भगवान् महावीर का जन्म हुआ। पार्श्व के समय में चातुर्याम धर्म प्रवर्तित था। एक बार राजकुमार पार्श्व गंगा के किनारे घूमने निकले। वहाँ एक तापस पंचाग्नि तप कर रहा था। चारों दिशाओं में अग्नि जल रही थी। ऊपर से सूर्य का प्रचण्ड ताप आ रहा था। पार्श्व वहाँ आकर रुके। उन्हें जन्म से अवधिज्ञान (एक प्रकार का अतीन्द्रिय ज्ञान) प्राप्त था। उस दिव्य ज्ञान से उन्होंने लक्कड़ में जल रहे सर्प-युगल को जान लिया। उन्होंने तापस से कहा—'यह क्या? जल रहे इस लक्कड़ में साँप का एक जोड़ा है। वह जलकर भस्म हो जाएगा।' लक्कड़ को बाहर निकाला गया। साँप का जोड़ा अधजला हो चुका था। उसे देखकर सब आश्चर्यचकित रह गए। राजकुमार पार्श्व ने उसे नमस्कार मन्त्र सुनाया। वह सर्प-युगल मर कर देव-रूप में उत्पन्न हुए। धरणेन्द्र-पद्यावती के नाम से वह युगल पार्श्वनाथ का परम उपासक बना। पार्श्व का धर्म बिल्कुल सीधा-सादा था। हिंसा, असत्य, स्तेय तथा परिग्रह इन चार बातों के त्याग करने का वे उपदेश देते थे। इतने प्राचीन काल में अहिंसा को इतना सुसम्बद्ध रूप देने का यह पहला ही उदाहरण है। पार्श्व मुनि ने एक और भी बात की। उन्होंने अहिंसा को सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह-इन तीन नियमों के साथ जकड़ दिया। इस कारण पहले जो अहिंसा ऋषि-मुनियों के आचरण तक ही सीमित थी और जनता के व्यवहार में जिसका कोई स्थान न था, अब वह इन नियमों के सम्बन्ध में सामाजिक और व्यावहारिक हो गई। पार्श्व मुनि ने तीसरी बात यह की कि अपने नवीन धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने संघ बनाए। बौद्ध साहित्य में इस बात का पता लगता है कि बुद्ध के समय जो संघ विद्यमान थे, उन सब में जैन साधु और साध्वियों का संघ सबसे बड़ा था। पार्श्व के पहले ब्राह्मणों के बड़े-बड़े समूह थे, पर वे सिर्फ यज्ञ-याग का प्रचार करने के लिए ही थे। यज्ञ-याग का तिरस्कार कर उसका त्याग कर जंगलों में तपस्या करने वालों के संघ भी थे। तपस्या का एक अंग समझकर ही वे अहिंसा-धर्म का पालन करते थे. पर समाज में उसका उपदेश नहीं देते थे। वे लोगों से बहुत कम मिलते-जुलते थे। "बुद्ध के पहले यज्ञ-याग को धर्म मानने वाले- ब्राह्मण थे और उसके बाद यज्ञ-याग से ऊबकर जंगलों में जाने वाले तपस्वी थे। बुद्ध के समय ऐसे ब्राह्मण और तपस्वी न थे, ऐसी बात नहीं है। पर इन दो प्रकार के दोषों को देखने वाले
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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