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भगवान् ऋषभ से पार्श्व तक
१६७ काल चक्र का पहला और दूसरा भाग बीत गया और तीसरे भाग का अधिकांश बीत गया। ये यौगलिक व्यवस्था के अन्तिम दिनों की कहानी है।' कुलकर-व्यवस्था
असंख्य वर्षों के बाद नये युग का आरम्भ हुआ। यौगलिक व्यवस्था धीरे-धीरे टूटने लगी। दूसरी कोई व्यवस्था अभी जन्म नहीं पाई। सक्रांन्ति-काल १. वैदिक परम्परामें १४ मन्वन्तर काल की दृष्टि है। राजर्षि मनु ने १४
मन्वन्तरों में स्वायंभुव, स्वारोचिष, औत्तम, नाभस, रेवत और चाक्षुस छह मन्वन्तरों की बीतने पर सातवें मन्वन्तर-वैवस्वत में मानवोत्पत्ति कही है, और उसके पश्चात् सात और मन्वन्तरों तक सृष्टि की आयु बताई है। "शतं मे अयुतं हायनान्द्वे युगे त्रीणि चत्वारि कृण्म:"-वेदोक्ति के अनुसार यह सृष्टि-आयु सौ अयुत हायनों वर्षों के पीछे क्रमश: २, ३, ४ अंक लिखने पर ४३२ करोड़ वर्ष होती है। अथर्ववेद में लिखा है कि भूत, भविष्यमय काल रूपी घर एक हजार खम्भों पर खड़ा है। मनुस्मृति (अध्याय-एक) में लिखा है कि कृत-युग में चार हजार वर्षों के साथ ४०० वर्षों की संध्या और ४०० वर्षों का संध्यांश शामिल है जबकि त्रेता, द्वापर, कलियुग में क्रमश: तीन, दो, एक हिस्सा होता है। तदनुसार चार युगों की वर्ष संख्या १२००० बनती है जो देव वर्ष कहे गए हैं। शतपथ ब्राह्मण में इसे प्रकारान्तर से लिखा हुआ है कि प्रजापति ने कुल १२ हजार बृहती छन्द बनाये। एक बृहती छन्द में ३६ अक्षर होने से ऋग्वेद में ३६४१२००० = ४,३२,००० अक्षर हैं। यही कलियुग की वर्ष संख्या भी है। ऋग्वेद के अनुसार इसका दस गुणा महायुग होता है और उसका हजार गुणा कल्पकाल अथवा सृष्टि की आयु होती है जिसे ऊपर कालरूपी घर कहा गया है। इन हजार महायुगों के कल्पकाल को १४ मन्वन्तरों में बाँटा गया है और प्रत्येक मन्वन्तर में ७१ महायुग माने गए हैं। गणनाम वैवस्वत मनु का जन्म (सं. २०४७) १२०. ५३३, ०९१ वर्ष पूर्व हुआ। इस गणना में सत्ताईस महायुगों का काल ११६,६४०००० वर्ष और वर्तमान २८वें महायुग के तीन युग- सतयुग-१७२८०००, त्रेता-१२९६०२० और द्वापर-८६४००० वर्प शामिल हैं। वर्तमान कलियुग का आरंभ आज से ५०९१ वर्ष पूर्व उस समय हुआ जबकि वृहस्पति ग्रह ने पुष्य नक्षत्र में प्रवेश किया। गणना अनुसार बृहस्पति के पुष्य नक्षत्र में प्रवेश को सं. २०४७ में ५०९१ वर्ष बीत चुके हैं और यह साठ वर्षीय संवत्सर चक्र में उसका ८५ वाँ चक्र है जिसके ५१ वर्ष बीत गए हैं।