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जैन दर्शन और संस्कृति फिर भी पागल व्यक्ति में चेतना की क्रिया चालू रहती है, वह उससे भी परे की शक्ति की प्रेरणा है। साधनों की कमी होने पर आत्मा की ज्ञान-शक्ति विकल हो जाती है, नष्ट नहीं होती। मस्तिष्क विकृत हो जाने पर अथवा उसे निकाल देने पर भी खाना-पीना, चलना-फिरना, हिलना-डुलना, श्वास-उच्छ्वास लेना आदि-आदि प्राण-क्रियाएं होती रहती हैं। वे यह बताती हैं कि मस्तिष्क के अतिरिक्त जीवन
की कोई दूसरी शक्ति है। उसी शक्ति के कारण शरीर के अनुभव और प्राण की क्रिया होती है। मस्तिष्क से चेतना का सम्बन्ध है। इसे आत्मवादी भी स्वीकार नहीं करते। 'तन्दुलवेयालिय' ग्रन्थ के अनुसार इस शरीर में १९० ऊर्ध्वगामिनी
और रसहारिणी शिराएं हैं, जो नाभि से निकलकर ठेठ सिर तक पहुँचती हैं। वे स्वस्थ होती हैं, तब तक आँख, कान, नाक और जीभ का बल ठीक रहता है। भारतीय आयुर्वेद के मत में भी मस्तिष्क प्राण और इन्द्रिय का केन्द्र माना गया है। महर्षि चरक ने लिखा है कि
.. "प्राणा: प्राणभृतां यत्र, तथा सर्वेन्द्रियाणि च ।
यदुत्तमांगमंगानां, शिरस्तदभिधीयते॥"
मस्तिष्क चैतन्य-सहायक धमनियों का जाल है। इसलिए मस्तिष्क की . अमुक शिरा काट देने से अमुक प्रकार की अनुभूति न हो, इससे यह फलित नहीं होता कि चेतना मस्तिष्क की उपज है। कृत्रिम मस्तिष्क चेतन नहीं
कृत्रिम मस्तिष्क (computers or super-computer) जिनका बड़े गणित के लिए उपयोग होता है, चेतनायुक्त नहीं हैं। वे चेतना-प्रेरित कार्यकारी यन्त्र हैं। उनकी मानव-मस्तिष्क से तुलना नहीं की जा सकती है। वास्तव में ये मानव-मस्तिष्क की भांति सक्रिय और बुद्धि-युक्त्त नहीं होते। ये केवल शीघ्र और तेजी से काम करने वाले होते हैं। यह मानव-मस्तिष्क की सुषुम्ना और मस्तिष्क स्थित श्वेत मज्जा के मोटे काम ही कर सकता है और इस अर्थ में यह मानवमस्तिष्क का एक शतांश भी नहीं। मानव-मस्तिष्क चार भागों में बंटा हुआ है
१. बृहन-मसतिष्क-जो संवेदना, विचार-शक्ति और स्मरण-शक्ति इत्यादि __ को प्रेरणा देता है। २. लघु-मस्तिष्क। ३. सेतु । ४. सुषुम्ना।
यांत्रिक मस्तिष्क केवल सुषुम्ना के ही कार्यों को कर सकता है, जो मानव-मस्तिष्क का एक अंश है ।