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-मैं कौन हूँ ?
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भाषा (वाणी - प्रयोग की क्षमता) अजीव में नहीं होती किन्तु सब जीवों में भी नहीं होती—त्रस जीवों में होती है, स्थावर जीवों में नहीं होती — इसलिए यह जीव का लक्षण नहीं बनता ।
क्रमश :
और एक दिन वह पूरे कुत्ते के बराबर हो जाता है लेकिन इन दोनों प्रकार के बढ़ाव में अन्तर है। चीनी के रवे या पत्थर का बढ़ाव उनकी सतह पर अधिकाधिक नए पर्त के जमाव होने की वजह से होता है । परन्तु इसके विपरीत छोटे पेड़ या पिल्ले अपने शरीर के भीतर खाद्य पदार्थों के ग्रहण करने से बढ़कर पूरे डीलडौल के हो जाते हैं । अतएव पशुओं और पौधों का बढ़ाव भीतर से होता है और निर्जीव पदार्थों का बढ़ाव यदि होता है तो बाहर से ।
१ - २. हिन्दी विश्व भारती, खण्ड १, पृ. ४२ :
प्राणी सजीव और अजीव दोनों प्रकार का आहार लेते हैं किन्तु उसे लेने के बाद वह सब अजीव हो जाता है। अजीव पदार्थों को जीव स्वरूप में कैसे परिवर्तित करते हैं, यह आज भी विज्ञान के लिए रहस्य है । वैज्ञानिकों के अनुसार वृक्ष निर्जीव पदार्थों से बना आहार लेते हैं । वह उसमें पहुँचकर सजीव कोषों का रूप धारण कर लेता है । वे निर्जीव पदार्थ सजीव बन गए, इसका श्रेय 'क्लोरोफिल' को है । वैज्ञानिक इस रहस्यमय पद्धति को नहीं जान सके हैं, जिसके द्वारा 'क्लोरोफिल' निर्जीव को सजीव में परिवर्तित कर देता है । जैन- दृष्टि के अनुसार निर्जीव आहार को स्वरूप में परिणत करने वाली शक्ति आहार-पर्याप्ति है। वह जीवन-शक्ति की आधार-शिला होती हैं और उसी के सहकार से शरीर आदि का निर्माण होता है ।
—लज्जावती की पत्तियां स्पर्श करते ही मूर्च्छित हो जाती हैं । आप जानते हैं कि आकाश में विद्युत् का प्रहार होते ही खेतों में चरते हुए मृगों का झुण्ड भयभीत होकर तितर-बितर हो जाता है । वाटिका में विहार करते हुए विहंगों में कोलाहल मच जाता है और खाट पर सोया हुआ अबोध बालक चौंक पड़ता है परन्तु खेत की मेड़ वाटिका के फव्वारे तथा बालक की खाट पर स्पष्टतया कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसा क्यों होता है, क्या कभी आपने इसकी ओर ध्यान दिया ? इन सारी घटनाओं की जड़ में एक ही रहस्य है और यह भी सजीव प्रकृति की प्रधानता है । यह जीवों की उत्तेजना - शक्ति और प्रतिक्रिया है । यह गुण लज्जावती, हरिण, विहंग, बालक अथवा अन्य जीवों में उपस्थित है, परन्तु किसी में कम, किसी में अधिक । आघात के अतिरिक्त अन्य अनेक कारणों का भी प्राणियों पर प्रभाव पड़ता है।