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__ जैन दर्शन और संस्कृति विज्ञानमय है। इसकी तुलना भाव-मन, चेतन-मन से होती है। विज्ञानमय आत्मा के भीतर आनन्दमय आत्मा रहता है। इसकी तुलना आत्मा की सुखानुभूति की दशा से हो सकती है। सजीव और निर्जीव पदार्थ का पृथक्करण
प्राण और अप्राणी में क्या भेद है? यह प्रश्न कितनी बार हृदय को आंदोलित नहीं करता? प्राण प्रत्यक्ष नहीं हैं। उनकी जानकारी के लिए किसी एक लक्षण की आवश्यकता होती है। यह लक्षण पर्याप्ति है। पर्याप्ति के द्वारा प्राणी विसदृश द्रव्यों (पुद्गलों) का ग्रहण, स्वरूप में परिणमन और विसर्जन करता है। जीव
अजीव
नहीं
१. प्रजनन-शक्ति (संतति-उत्पादन) प्रजनन-शक्ति नहीं। २. वृद्धि
वृद्धि नहीं। ३. आहार-ग्रहण,' स्वरूप में परिणमन, विसर्जन।
नहीं ४. जागरण, नींद, परिश्रम, विश्राम नहीं
नहीं . . ५. आत्म-रक्षा के लिए प्रवृत्ति ६. भय-त्रास की अनुभूति हिन्दी विश्व भारती, खण्ड १, पृ. ४१, ५० : (क) कृत्रिम उद्भिज अपने आप बढ़ जाता है। फिर भी सजीव पौधे की बढ़ती और इसकी बढ़ती में गहरा अन्तर है। सजीव पौधा अपने आप ही अपने. कलेवर के भीतर होने वाली स्वाभाविक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप बढ़ता है। इसके विपरीत......: जड़ पदार्थ से तैयार किया हुआ उद्भिज बाहरी क्रिया का ही परिणाम है। . (ख) सजीव पदार्थ बढ़ते हैं और निर्जीव नहीं बढ़ते, लेकिन क्या चीनी का 'रवा' चीनी के संपृक्त घोल में रखे जाने पर नहीं बढ़ता? यही बात पत्थरों और कुछ चट्टानों के बारे में भी कही जा सकती है, जो पृथ्वी के नीचे से बढ़कर छोटे या बढ़े आकार ग्रहण कर लेते हैं। एक ओर हम आम की गुठली से एक पतली शाखा निकलते हुए देखते हैं और इसे एक
छोटे पौधे और अन्त में एक पूरे वृक्ष के रूप में बढ़ते हुए पाते हैं, और ___ दूसरी ओर एक पिल्ले को धीरे-धीरे बढ़ते हुए देखते हैं क्रमश: .....