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________________ मैं कौन हूँ ? १०१ है, न संग है, न रस है, न गन्ध है, न नेत्र है, न कर्ण है, न वाणी है, न मन है, न तेज है, न प्राण है, न मुख है, न अन्तर है, न बाहर है। संक्षेप मेंबौद्ध-आत्मा स्थायी नहीं, चेतना का प्रवाह मात्र है। न्याय-वैशेषिक-आत्मा स्थायी है, किन्तु चेतना उसका स्थायी स्वरूप नहीं। गहरी नींद में वह चेतनाविहीन हो जाती है। वैशेषिक-मोक्ष में आत्मा की चेतना नष्ट हो जाती है। सांख्य-आत्मा स्थायी, अनादि, अनंत, अविकारी, नित्य और चित्स्वरूप है। बुद्धि अचेतन है—प्रकृति का विवर्त है। मीमांसक-आत्मा में अवस्था-भेद-कृत भेद होता है, फिर भी वह नित्य है। जैन-आत्मा परिवर्तन-युक्त, स्थायी और चित्स्वरूप है। बुद्धि भी चेतन है। गहरी नींद या मूर्छा में चेतना होती है, उसकी अभिव्यक्ति नहीं होती, सूक्ष्म अभिव्यक्ति होती भी है। मोक्ष में चेतना का सहज उपयोग (ज्ञान-दर्शन रूप व्यापार) होता है। चेतना की आवृत-दशा में उसे प्रवृत्त करना पड़ता है-अनावृत-दशा में वह सतत प्रवृत्त रहती है। औपनिषदिक दृष्टि और जैन-दृष्टि की तुलना औपनिषदिक सृष्टि-क्रम में आत्मा का स्थान पहला है। 'आत्मा' शब्द-वाच्य ब्रह्म से आकाश उत्पन्न हुआ। आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से पानी, पानी से पृथ्वी, पृथ्वी से औषधियाँ, औषधियों से अन्न और अन्न से पुरुष उत्पन्न हुआ। वह यह पुरुष अन्न-रसमय ही है—अन्न और रस का विकार है। इस अन्न-रसमय पुरुष की तुलना औदारिक शरीर से होती है। इसके सिर आदि अंगोपांग माने गए हैं। प्राणमय आत्मा (शरीर) अन्नमय कोष की भांति पुरुषाकार है। किन्तु उसकी भाँति अंगोपांग वाला नहीं है। पहले कोश की पुरुषाकारता के अनुसार ही उत्तरवर्ती कोश पुरुषाकार है। पहला कोश उत्तरवर्ती कोश से पूर्ण, व्याप्त या भरा हुआ है। इस प्राणमय शरीर की तुलना श्वासोच्छ्वास-पर्याप्ति से की जा सकती है। प्राणमय आत्मा जैसे अन्नमय कोश के भीतर रहता है, वैसे ही मनोमय आत्मा प्राणमय कोश के भीतर रहता है। इस मनोमय शरीर की तुलना मन:-पर्याप्ति से हो सकती है। मनोमय कोश के भीतर विज्ञानमय कोश है। निश्चयात्मिका बुद्धि जो है, वहीं विज्ञान है। वह अन्त:करण का अध्यवसाय-रूप धर्म है। इस निश्चयात्मिका बुद्धि से उत्पन्न होने वाला आत्मा
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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