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जन्म-मृत्यु का चक्रव्यूह
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प्रत्येक वस्तु के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, शब्द और संस्थान का ज्ञान सहायक सामग्री-सापेक्ष होता है । अतीन्द्रिय ज्ञान परिस्थिति की अपेक्षा से मुक्त होता है । उसकी प्राप्ति में देश, काल और परिस्थिति का व्यवधान या विपर्यास नहीं आता; इसलिए उससे वस्तु के मौलिक रूप की सही-सही जानकारी मिलती है
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यह उल्लेखनीय है कि परामनोविज्ञान के क्षेत्र में जाति - स्मृति ( पूर्व जन्म का ज्ञान), दूर-बोध (clairvoyance ) पूर्वाभाष (precognition), परिचित्त-बोध ( telepathy) आदि अतीन्द्रिय ज्ञान ( Extra-sensory-perception या ESP) सम्बन्धी का भी गवेषणापूर्ण शोधकार्य चल रहा है।
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अभ्यास
१. “ जैन दर्शन में जन्म की प्रक्रिया को वैज्ञानिक पद्धति से व्याख्यायित किया गया है।" क्या आप इस मन्तव्य से सहमत हैं? अपना उत्तर सप्रमाण स्पष्ट करें ।
२. जीवन क्रम में प्राण-शक्ति का कितना और कैसा उपयोग होता है ? ३. इन्द्रिय-ज्ञान, मानस - ज्ञान और अतीन्द्रिय ज्ञान की जैन अवधारणाओं की व्याख्या करें ।
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