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जन्म-मृत्यु का चक्रव्यूह
८७ मानस-शक्ति का उपयोग नहीं होता। मानस-ज्ञान गर्भज और उपपातज पंचेन्द्रिय प्राणियों के ही होता है इसलिए उसके द्वारा प्राणी दो भागों में बंट जाते हैं—संज्ञी और असंज्ञी या समनस्क और अमनस्क।
आधुनिक जीव-विज्ञान (Biology) की भाषा में कहा जाए तो केवल कशेरुकी (vertebrate) प्राणी समनस्क और अ-कशेरुकी (invertebrate) प्राणी अमनस्क होते हैं।
द्वीन्द्रिय आदि प्राणियों में, आत्म-रक्षा की भावना, इष्ट-प्रवृत्ति, अनिष्ट-निवृत्ति, आहार, भय आदि संज्ञाएँ, संकुचन, प्रसारण, शब्द, पलायन, आगति, गति, आदि चेष्टाएँ होती हैं—ये मन के कार्य हैं। तब फिर वे असंज्ञी क्यों? इष्ट-प्रवृत्ति और अनिष्ट-निवृत्ति का संज्ञान मानस-ज्ञान की परिधि का है, फिर भी वह सामान्य है-नगण्य है, इसलिए उससे कोई प्राणी संज्ञी नहीं बनता। एक कौड़ी भी धन है, पर उससे कोई धनी नहीं कहलाता। संज्ञी वही होते हैं जिनमें दीर्घकालिकी संज्ञा मिले, जो भूत, वर्तमान और भविष्य की ज्ञान-श्रृंखला को जोड़ सके। इन्द्रिय और मन
पूर्व पंक्तियों में इन्द्रिय और मन का संक्षिप्त विश्लेषण किया। उससे उन्हीं का स्वरूप स्पष्ट होता है। संज्ञी और असंज्ञी के इन्द्रिय और मन का क्रम स्पष्ट नहीं होता। असंज्ञी और संज्ञी के इन्द्रिय-ज्ञान में कुछ न्यूनाधिक्य रहता है या नहीं? मन से उसका कुछ सम्बन्ध है या नहीं? इसे स्पष्ट करना चाहिए। असंज्ञी के केवल इन्द्रिय-ज्ञान होता है, संज्ञी के इन्द्रिय और मानस-दोनों ज्ञान होते हैं। इन्द्रिय-ज्ञान की सीमा दोनों के लिए एक है। किसी रंग को देखकर संज्ञी और असंज्ञी चक्षु के द्वारा सिर्फ इतना ही जानेंगे कि यह रंग है। इन्द्रिय-ज्ञान में भी अपार न्यूनाधिक्य होता है। एक प्राणी चक्षु के द्वारा जिसे स्पष्ट जानता है, दूसरा उसे बहुत स्पष्ट जान सकता है। फिर भी अमुक रंग है, इससे आगे नहीं जाना जा सकता। उसे देखने के पश्चात्, ऐसा क्यों? इससे क्या लाभ? यह स्थायी है या अस्थायी? कैसे बना? आदि-आदि प्रश्न या जिज्ञासाएँ मन का कार्य है। असंयमी के ऐसी जिज्ञासाएँ नहीं होती। उनका सम्बन्ध अप्रत्यक्ष धर्मों से होता है। इन्द्रिय-ज्ञान से प्रत्यक्ष धर्म से एक सूत भी आगे बढ़ने की क्षमता नहीं होती। संज्ञी जीवों में इन्द्रिय और मन दोनों का उपयोग होता है। मन इन्द्रिय-ज्ञान का सहचारी भी होता है और उसके बाद भी इन्द्रिय द्वारा जाने हुए पदार्थ की विविध अवस्थाओं को जानता है। मन का मनन या चिंतन स्वतंत्र हो सकता है. कितु बाह्य विषयों का पर्यालोचन इन्द्रिय