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अहिंसा से प्रदूषण की असंभावना जैन धर्म के आचार में अहिंसा का प्रमुख स्थान है। वहाँ कहा गया है-किसी जीव को न मारना चाहिए, न सताना चाहिए और न उसे किसी प्रकार का दुःख, कष्ट और पीड़ा ही देनी चाहिए। __साथ ही यह भी तथ्य है कि जैन धर्म ने चलते-फिरते प्राणियों को तो जीव माना ही है, साथ ही पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति में भी जीव चेतना स्वीकार की है। आज का विज्ञान भी इन पाँचों स्थावरों-पृथ्वी, जल, वनस्पति आदि में जीव का अस्तित्व स्वीकार करता है, चेतना मानता है।
जैन धर्म का जीवन-सन्देश है कि किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए। इसके साथ यह भी समझ लेना चाहिए कि अहिंसा के विधेयात्मक रूप का पालन करते हुए प्रत्येक जीव की यथासंभव सुरक्षा तथा उसका संरक्षण भी करना चाहिए।
एक-एक जीव-समुदाय की सुरक्षा का विचार करें।