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चुकी होती है। तथा उनकी प्रवृत्ति को नियंत्रित भी करती है।
यही अहिंसा का लक्ष्य अचौर्य आदि अन्य सन्देशों का अभिप्रेत है। परिग्रह, चूँकि हिंसा का कारण है अतः उसको भी अत्यधिक अल्प करने का सन्देश जैन धर्म ने दिया है। मानव की यह विशेषता है कि वह तीव्र मेधा का धनी और चिन्तनशील प्राणी है, उसे विशिष्ट स्मरण शक्ति प्राप्त हुई है, वह अपने मस्तिष्क में युगों के अनुभवों को संचित रख सकने में सक्षम है। उसे सौन्दर्य-बोध भी है, और अद्भुत बुद्धि शक्ति भी उसके पास है। जिसका उपयोग वह स्वयं अपनी तथा प्राणी जगत की रक्षा-सुरक्षा में भी कर सकता है और विनाश में भी।
प्रदूषण मानव ने जब-जब भी अपनी बुद्धि की दिशा को भौतिक सुख-समृद्धि की ओर गतिशील किया है, तब-तब ही उपभोगवादी संस्कृति को पनपने का-बढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। इस उपभोगवादी संस्कृति के ही परिणामस्वरूप मानव प्राकृतिक तत्वों के साथ छेड़छाड़ करता