SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न रहा। त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र जैसा महान ग्रन्थ आपकी प्रौढ़ रचना है । इसी श्रृंखला में अर्ह नीति, सिद्ध हेमव्याकरण, कुमारपाल प्रतिबोध आदि रचनाएँ भी अपनी सानी नहीं रखतीं । आपने अपने जीवन में लगभग साढ़े तीन करोड़ श्लोकों की रचना की । आपकी उत्कृष्ट मेधा और प्रत्येक विषय के पांडित्य के कारण आपको कलिकाल सर्वज्ञ का विरुद प्राप्त हुआ । धर्मवीर लोकाशाह का जन्म दिवस भी कार्तिकी पूनम है । आप सत्यशोधक और आगमों के मर्मज्ञ थे । धर्म के नाम पर जड़ पूजा के रूप में जो आडम्बर प्रविष्ट हो गया था, वह आपको रुचा नहीं । आपने पाखंड व धर्म के नाम पर फैले आडम्बर को दूर कर आगमसम्मत शुद्ध आचार परम्परा का प्रबल प्रचार किया। परिणाम यह हुआ कि स्थानकवासी परम्परा के स्थापित होने के अनुकूल (६२)
SR No.006266
Book TitleChaturmas Aatmullas Ka Parv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy