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वातावरण बना । इसी कारण आप स्थानकवासी परम्परा के आदि पुरुष अथवा जनक कहलाते हैं ।
जीवराजजी, लवजी, ऋषिजी आदि संतों ने स्थानकवासी परम्परा को आगे बढ़ाया, उसको गति दी । और आज यह परम्परा जिसका बीजारोपण लोकाशाह ने किया था, विशाल वटवृक्ष बनकर फल-फूल रही है और इसकी छाया में अनेक भव्य जीव सुख-शान्तिपूर्वक आध्यात्मिक साधना करके अपने मानव-जीवन को सफल बना रहे हैं । ___कार्तिकी पूर्णिमा का एक महत्व यह भी है कि चार मास तक एक स्थान परअवस्थित रहे साधु-साध्वी अन्य क्षेत्रों में धर्म-जागरणा हेतु प्रस्थान करते हैं । विदाई बेला का वह क्षण अत्यन्त मार्मिक बन जाता है । श्रावक-श्राविकाओं के दिल भरे होते
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